मैं रात
एक सफेद दीवार ताकते हुए
सोच रहा था
आने वाली चुनौतियों के बारें में;
दीवार पर
बन आ रहे थे फूल कभी
कभी आ रहे थे
आड़े-टेड़े रास्ते,
कभी टपकता दीख रहा था
शहद दरारों से,
कभी उखड़े पेंट से भयावह शैतान झाँकता;
फिर अचानक तुम दिखी,
और रुक गई दौड़ती मेरी दृष्टि-
चुनौतियाँ लगने लगी हिस्सा अभीष्ट का,
और तुम साधना।