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मसीह में रिश्ते MASIH MEN RISHTE


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ख़ुदा हमारे पिता हैं — क्योंकि हम मसीह में उसके बेटे और बेटियाँ कहलाए (यूहन्ना 1:12)।यीशु हमारे भाई हैं — क्योंकि वही पहलौठा है और हम उसके साथ विरासत में भागी हैं (रोमियों 8:29)।विश्वासी आपस में भाई-बहन हैं — क्योंकि सब एक ही आत्मा से एक देह बने हैं (1 कुरिन्थियों 12:13)।कलीसिया मसीह की दुल्हन है — और मसीह उसका दूल्हा (इफिसियों 5:25-27)।मसीह सिर है, और हम उसके शरीर के अंग हैं (कुलुस्सियों 1:18)।हम इंसान पारिवारिक, शारीरिक और सांसारिक रूप से रिश्ते तो रखते हैं — माँ, पिता, भाई, बहन, पति, पत्नी, मित्र — पर क्या हम उन रिश्तों को ख़ुदा के दृष्टिकोण से समझते हैं?क्या हम उनमें रूहुल-कुद्स की समझ, हक़ की रूह, और क़लाम की हिदायत के अनुसार चलते हैं?यदि रिश्ते केवल नाम के हों, पर उनमें सच्ची मोहब्बत, नेक नीयत और पाक दिल न हो, तो वे रिश्ते मुरदा (मृत) हैं।क्योंकि ख़ुदा मोहब्बत है (1 यूहन्ना 4:8) — और जहाँ मोहब्बत नहीं, वहाँ ख़ुदा नहीं।क़लाम कहता है:"भ्रातृ प्रेम बना रहे।"(इब्रानियों 13:1)"और इन सब के ऊपर प्रेम को, जो सिद्धता का बंधन है, धारण करो।"(कुलुस्सियों 3:14)यानी हर रिश्ते का केंद्र प्रेम होना चाहिए।मसीह में परिवार – एक देहमसीह में हम सब एक ही परिवार हैं, एक ही देह हैं।यदि हम मसीह की रूह से चलते हैं, तो हमें यह समझना होगा कि हर रिश्ता —पिता-पुत्र, पति-पत्नी, भाई-बहन, माता-पुत्र, या मित्रता —ख़ुदा की देन है और उसका उद्देश्य है उसकी महिमा प्रकट करना।ख़ुदा का प्रेम – पिता और पुत्र का रिश्ता"क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना इकलौता पुत्र दे दिया।"(यूहन्ना 3:16)पिता ने संसार से उसी तरह प्रेम किया जैसे वह अपने पुत्र से करता है।पुत्र ने भी पिता की इच्छा पूरी की — और इस आज्ञाकारिता ने प्रेम की पूर्णता को प्रकट किया।"पिता मुझसे इसलिए प्रेम रखता है कि मैं अपनी जान देता हूँ..."(यूहन्ना 10:17-18)यह हमें दिखाता है कि सच्चा रिश्ता बलिदान (sacrifice) से बनता है।प्रेम की पहचान"मैं तुम्हें एक नया आज्ञा देता हूँ कि जैसा मैंने तुमसे प्रेम रखा, वैसे ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो।"(यूहन्ना 13:34-35)जो मसीह में हैं, वे उसी प्रेम से दूसरों को देखते हैं — क्षमा करते हैं, धैर्य रखते हैं, और भलाई करते हैं।"प्रेम सब कुछ सह लेता है, सब कुछ विश्वास करता है, सब कुछ आशा रखता है, सब कुछ सहन करता है।"(1 कुरिन्थियों 13:7)रिश्तों का उद्देश्य – ख़ुदा की महिमाहर रिश्ता, चाहे वह पति-पत्नी का हो या भाई-बहन का,उसका मकसद है कि उसमें से मसीह का स्वभाव झलके।"हे पत्नियों, अपने पतियों के आधीन रहो जैसे प्रभु में उचित है... और हे पतियों, अपनी पत्नियों से प्रेम रखो जैसे मसीह ने कलीसिया से किया।"(कुलुस्सियों 3:18-19)"हे बच्चों, हर बात में अपने माता-पिता के आज्ञाकारी रहो, क्योंकि यह प्रभु में उचित है।"(कुलुस्सियों 3:20)"हे पिताओं, अपने बच्चों को क्रोधित न करो ताकि वे निराश न हों।"(कुलुस्सियों 3:21)यह सब केवल परिवार की व्यवस्था नहीं, बल्कि आत्मिक प्रशिक्षण है — ताकि हम ख़ुदा के परिवार जैसे बनें।सच्चे प्रेम की पहचान"यदि कोई कहे कि मैं परमेश्वर से प्रेम रखता हूँ, और अपने भाई से बैर रखता है, तो वह झूठा है।"(1 यूहन्ना 4:20)जो अपने भाई से, जिसे वह देखता है, प्रेम नहीं रखता, वह परमेश्वर से, जिसे उसने नहीं देखा, कैसे प्रेम रख सकता है?"सबसे बढ़कर यह है कि आपस में गहरी प्रेम रखो, क्योंकि प्रेम बहुत से पापों पर परदा डाल देता है।"(1 पत्रुस 4:8)मसीही घराने की शिक्षा"हे पत्नियों, अपने पतियों का आदर करो; हे पतियों, अपनी पत्नियों से प्रेम रखो; हे बच्चों, अपने माता-पिता की आज्ञा मानो; हे पिता, अपने बच्चों को क्रोधित न करो।"(इफिसियों 5:22–6:4)"हे वृद्ध पुरुषों, उन्हें पिता मानकर समझाओ; युवकों को भाइयों की तरह; वृद्ध स्त्रियों को माताओं की तरह; और जवान स्त्रियों को पवित्रता से बहनों की तरह समझो।"(1 तीमुथियुस 5:1-2)निष्कर्ष:मसीह में रिश्ता केवल रक्त से नहीं, आत्मा से जुड़ा है।जहाँ प्रेम है — वहाँ मसीह है।जहाँ क्षमा है — वहाँ रूहुल कुद्स काम करती है।जहाँ बलिदान है — वहाँ पिता की महिमा झलकती है।इसलिए, यदि मसीह हमारे भीतर जीवित है, तो हमारा हर रिश्ताउस जीवित प्रेम की गवाही देना चाहिए।"जो प्रेम में बना रहता है, वह परमेश्वर में बना रहता है, और परमेश्वर उसमें।"(1 यूहन्ना 4:16)

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