उसने माँ का धर्म तो ग्रहण नहीं किया था, पर मन में माँ की पूजा करता था। वह माँ तो अब नहीं रहीं, किन्तु उनकी स्मृति की रक्षा के लिए उसने समाज से ठुकराई गई पीड़ित हिन्दू लड़कियों को विशेष रूप से आश्रय देने का प्रण उठाया हुआ है।
उसने माँ का धर्म तो ग्रहण नहीं किया था, पर मन में माँ की पूजा करता था। वह माँ तो अब नहीं रहीं, किन्तु उनकी स्मृति की रक्षा के लिए उसने समाज से ठुकराई गई पीड़ित हिन्दू लड़कियों को विशेष रूप से आश्रय देने का प्रण उठाया हुआ है।