Pratidin Ek Kavita

Nafi | Kishwar Naheed


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नफ़ी | किश्वर नाहीद


मैं थी आईना फ़रोश* (विक्रेता)

कोह-ए-उम्मीद* (आशा का पहाड़) के दामन में

अकेली थी ज़ियाँ* (नुक़्सान) कोशिश

सुरय्या की थी हम-दोश

मुझे हर रोज़ हमा-वक़्त* (हर समय) थी बस अपनी ख़बर

मैं थी ख़ुद अपने में मदहोश


मैं वो तन्हा थी

जिसे पैर मिलाने का सलीक़ा भी न था

मैं वो ख़ुद-बीं* (आत्म-मुग्ध) थी

जिसे अपने हर इक रुख़ से मोहब्बत थी बहुत

मैं वो ख़ुद-सर* (अवज्ञाकारी) थी

जिसे हाँ के उजालों से बहुत नफ़रत थी

मैं ने फिर क़त्ल किया ख़ुद को

पिया अपना लहू हँसती रही

लोग कहते हैं हँसी ऐसी सुनी तक भी नहीं


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Pratidin Ek KavitaBy Nayi Dhara Radio