Kalam (Hindi Poetry)

निरपेक्ष काल की सापेक्षता


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संसार सागर में समय की सापेक्षता सबके साथ सन्निहित है। स्वयं में निरपेक्ष होते हुए भी वह शाश्वत सापेक्ष है। अगर हम यह मान लें कि वक्त ही जगत में हमें लाया है और कालांतर में वही लेकर जायेगा तो इस कबूतर की तरह हम भी दुनियाभर के झंझावातों से भयमुक्त हो जायेंगे। क्या स्थूल वस्तुओं के साथ हम निरपेक्ष रह सकते हैं। आइए निरपेक्षता के पाठ को पढ़ते हैं इस कबूतर के जोड़े से।

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Kalam (Hindi Poetry)By Dr. Sudhanshu Kumar