चल ढूंढ़ते हैं , सफरनामा एक नयापत्थर की मूरतों को इंसान बनाते हैंइक बस हंसी तू फूंकना , कुछ रंग छिड़कू मैंचल मिलके , इक नया गुलिस्तां बनाते हैं !चल तोड़ते हैं आज ये , दीवार-ए-अजनबीचल मिलके एक नया खुशनुमा जहाँ बनाते हैं !शिकायत न हो तुझे , न मुझे, की मैं बदल गयानक्काशी करके , आइना-ए-इमान बनाते हैं !बिखरे हुए तिनके हैं, जो चल मिलके समेटते हैंसादी सी डोरियों में थोड़ा रंग लपेटते हैंचल दुरुस्त करते हैं, तस्सवुर कुछ इस कदर ,क़ुत्बों में कौंसे हो जड़ें, वो अंजाम बनाते हैं !परवाज़ न तेरी रुके, न मेरी चढ़े स...