देख के हवाओं का ये रुख
थोड़ी देर,
ठहर जाना चाहता हूँ,
आँखें मूंद कर,
थोड़ा सब्र सा पाना चाहता हूं,
मन की ये कशमकश को थोड़ा आराम देना चाहता हूँ,
सवालों के ढेर हैं,
पर जवाब के लिए थोड़ा रूक जाना चाहता हूँ,
देख के हवाओं का ये रुख
थोड़ी देर,
ठहर जाना चाहता हूँ।
बरसात की बारिश की तरह,
थोड़ा बरस जाना चाहता हूँ,
ये चारों तरफ फैली,
दुख की आग को थोड़ा बुझा देना चाहता हूं,
देख के हवाओं का ये रुख
थोड़ी देर,
ठहर जाना चाहता हूँ।
प्रकृति तेरा नाराज होना भी जायज था,
पर मनाने का थोड़ा मौका पाना चाहता हूं,
घुटनों पर बैठा हूँ,
बस बेबसी का ये आलम,
थोड़ा थमता देखना चाहता हूँ,
देख के हवाओं का ये रुख
थोड़ी देर,
ठहर जाना चाहता हूँ।
By- Pooja Sharma