Pratidin Ek Kavita

Purana Ghar | Gobind Prasad


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पुराना घर। गोबिंद प्रसाद


पुराना घर

इतना पुराना


कि कभी पुराना नहीं होता

कविता की उस किताब की तरह


पंक्तियों के बीच

ठहरे हुए किसी अनबीते की तरह


मन में बसा रहता है यह पुराना घर

पुराना घर


आज भी कितना नया है

इन आँखों में


और आँखें ख़ुद कितनी नई हैं

घर के इस पुरानेपन को देखने के लिए


इसे कौन जानता है

सिवा पुराने घर के...।


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