दस्तक संवाद समूह के संस्थापक श्री अनिल करमेले जी बड़ी अच्छी कविताएं साझा करते हैं, आज उनमें से यह एक कविता मुझे बहुत पसंद आई क्योंकि मैं मुंबई में रहते हुए इस स्थिति से इतनी बार गुज़री हूं कि लगभग मेंटल ऐगोनी में गले में पिसते हुए दर्द के साथ भारी बारिश में असहाय होकर घुटी हूं, मेरे काम करने वाला लैपटॉप, मेरे ज़रूरी कागज़ात सब कुछ यहाँ की बारिश में खतरे में आए हैं जिससे जीवन बड़ा प्रभावित और कष्टप्रद हो जाता है। ऐसे में यह कविता मुझे सुखद लगी दुःख साझा करने जैसी लगी और एक ही रीडिंग में बिना प्रेक्टिस पढ़ कर आपको भेज रही , कुछ त्रुटियां हैं पर अपना प्रेम इस रिकॉर्डिंग को भी ज़रूर दीजिएगा, हम बिना सर छुपाने की जगह वाले शक के घेरे में खड़े भीगते शहरियों आराम मिलेगा।
प्रज्ञा मिश्र
मुंबई
---
Send in a voice message: https://podcasters.spotify.com/pod/show/shatdalradio1/message