उस दिन युद्ध जीतने के बाद रानी सारंधा बादशाह के घोड़े को अपने राज्य में ले आती है,क्योंकि यह घोड़ा चंपत राय को बहुत ही मोहित कर देता है, एक बार युवराज उस घोड़े में सवारी करते-करते आगरा तक पहुंच गए, बादशाह इसी फिराक में बैठा हुआ था और उसने अपने घोड़े को अपने कब्जे में ले लिया जब युवराज बुंदेलखंड लौट के आते हैं रानी सारंधा से अपनी आपबीती बताते हैं रानी सारंधा युवराज से कहती हैं तुम जीते ही क्यों लौट आए क्या तुझमे इतना भी बल नहीं था कि तुम उस घोड़े के लिए युद्ध कर सकते यह कहकर रानी अपने 25 सैनिकों के साथ बादशाह के महल पहुंचती है और फिर घोड़े को वापस पाने के लिए वह अपना राजपाठ सब कुछ दांव में लगाकर घोड़े को वापस ले आती है बादशाह कहता है यह सौदा आपको महंगा न पड़ा एक घोड़े के लिए आप अपना सब कुछ हार रही है रानी सारंधा ने कहा नहीं यह घोड़ा नहीं मेरी आन है और अपनी आन के लिए मैं अपनी जान भी निछावर कर सकती हूं।