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रेशम के धागों के ताने और बाने से बनी ये साड़ियाँ खड्डी या हथकरघे पर बनाई जाती हैं। वैसे तो आजकल कपड़ा बुनने की कई मशीन आ गई हैं पर असली बनारसी साड़ी हथकरघे पर ही बनती हैं।
बनारस में बनने वाली ये बनारसी साड़ियाँ कई सदियों से दुल्हन के और नव विवाहिता स्त्रियों के साज- श्रृंगार का अभिन्न अंग रही हैं। वैसे तो इन साड़ियों को मुग़ल सम्राट अकबर के समय खूब तरक्की मिली, इनके अस्तित्व के चिन्ह दो हज़ार साल पुराने हैं। 300 ईसा पूर्व की जातक कथाओं में गंगा किनारे कपड़ों के बाजार की बात की गई है जहाँ कपड़ों को खरीदें और बेचे जाने का जिक्र है जिसे बनारसी साड़ी से जोड़ा जाता है।
एक बनारसी साड़ी को बनाने में एक हफ्ते से लेकर कई बार तीन से महीने का समय भी लग जाता है जो एक साथ तीन से चार लोग मिलकर बनाते हैं। साड़ी में रेशम के धागों के साथ ज़री की बूटियां बनाई जाती हैं। प्राचीन समय में इसमें लगने वाली ज़री सोने और चांदी की हुआ करती है पर अब नइ अप्राकृतिक ज़री का इस्तेमाल भी किया जाने लगा है। शादी के अवसर पर आज भी खरीददार असली सोने चांदी की ज़री वाली साड़ियाँ ही लेना पसंद करते हैं क्यूंकि इन धातुओं को पवित्र मन जाता है।
मज़े की बात तो यह है की बनारस में रेशम नहीं पाया जाता क्यूंकि बनारस की जलवायु रेशम के लिए उपयुक्त नहीं है। बनारस में रेशम बहार से आता है और बनारसी साड़ी कतान रेशम के ताने बाने में ज़री की आकर्षक बूटियाँ बुनकर बनाई जाती है। असली रेशम से बनी साड़ी जलने पर राख हो जाती है, यह पॉलिएस्टर की तरह जलने पर पिघलती या चिपकती नहीं और इसीलिए सूती कपड़ों की ही तरह रेशमी कपड़े भी त्वचा के लिए अच्छे माने जाते हैं।
एक तरफ इन साड़ियों की बड़ी मांग है पर दूसरी और कारीगरों को सही मेहनताना नहीं मिलने के कारण ये प्राचीन कला धीरे-धीरे सीमित होती जा रही है।
रेशम के धागों के ताने और बाने से बनी ये साड़ियाँ खड्डी या हथकरघे पर बनाई जाती हैं। वैसे तो आजकल कपड़ा बुनने की कई मशीन आ गई हैं पर असली बनारसी साड़ी हथकरघे पर ही बनती हैं।
बनारस में बनने वाली ये बनारसी साड़ियाँ कई सदियों से दुल्हन के और नव विवाहिता स्त्रियों के साज- श्रृंगार का अभिन्न अंग रही हैं। वैसे तो इन साड़ियों को मुग़ल सम्राट अकबर के समय खूब तरक्की मिली, इनके अस्तित्व के चिन्ह दो हज़ार साल पुराने हैं। 300 ईसा पूर्व की जातक कथाओं में गंगा किनारे कपड़ों के बाजार की बात की गई है जहाँ कपड़ों को खरीदें और बेचे जाने का जिक्र है जिसे बनारसी साड़ी से जोड़ा जाता है।
एक बनारसी साड़ी को बनाने में एक हफ्ते से लेकर कई बार तीन से महीने का समय भी लग जाता है जो एक साथ तीन से चार लोग मिलकर बनाते हैं। साड़ी में रेशम के धागों के साथ ज़री की बूटियां बनाई जाती हैं। प्राचीन समय में इसमें लगने वाली ज़री सोने और चांदी की हुआ करती है पर अब नइ अप्राकृतिक ज़री का इस्तेमाल भी किया जाने लगा है। शादी के अवसर पर आज भी खरीददार असली सोने चांदी की ज़री वाली साड़ियाँ ही लेना पसंद करते हैं क्यूंकि इन धातुओं को पवित्र मन जाता है।
मज़े की बात तो यह है की बनारस में रेशम नहीं पाया जाता क्यूंकि बनारस की जलवायु रेशम के लिए उपयुक्त नहीं है। बनारस में रेशम बहार से आता है और बनारसी साड़ी कतान रेशम के ताने बाने में ज़री की आकर्षक बूटियाँ बुनकर बनाई जाती है। असली रेशम से बनी साड़ी जलने पर राख हो जाती है, यह पॉलिएस्टर की तरह जलने पर पिघलती या चिपकती नहीं और इसीलिए सूती कपड़ों की ही तरह रेशमी कपड़े भी त्वचा के लिए अच्छे माने जाते हैं।
एक तरफ इन साड़ियों की बड़ी मांग है पर दूसरी और कारीगरों को सही मेहनताना नहीं मिलने के कारण ये प्राचीन कला धीरे-धीरे सीमित होती जा रही है।