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हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारी ज़िन्दगियों से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़ी दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तंभ 'एक गीत सौ अफ़साने'। इसकी तीसरी कड़ी में आज प्रस्तुत है साल 2011 की आमिर ख़ान की चर्चित फ़िल्म ’Delhi Belly’ के गीत “सैगल ब्लूज़” से सम्बन्धित जानकारी ...
फ़िल्म जगत के प्रथम singing superstar कुंदनलाल सहगल को इस फ़ानी दुनिया से गए सात दशक बीत चुके हैं, पर उनकी आवाज़ का जादू आज भी रसिकों के सर चढ़ कर बोला करता है। फ़िल्म 'डेल्ही बेली' में राम सम्पत और चेतन शशितल ने सहगल साहब को श्रद्धांजली स्वरूप एक गीत की रचना की थी, जिसे मिली-जुली प्रतिक्रियाएं मिली थी। क्यों मिली थी दो विपरित प्रतिक्रियाएं? क्यों सहगल साहब की शैली में इस गीत की रचना की गई थी इस फ़िल्म के लिए? चलिए आज इन सवालों पर से परदा उठाया जाए!
हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारी ज़िन्दगियों से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़ी दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तंभ 'एक गीत सौ अफ़साने'। इसकी तीसरी कड़ी में आज प्रस्तुत है साल 2011 की आमिर ख़ान की चर्चित फ़िल्म ’Delhi Belly’ के गीत “सैगल ब्लूज़” से सम्बन्धित जानकारी ...
फ़िल्म जगत के प्रथम singing superstar कुंदनलाल सहगल को इस फ़ानी दुनिया से गए सात दशक बीत चुके हैं, पर उनकी आवाज़ का जादू आज भी रसिकों के सर चढ़ कर बोला करता है। फ़िल्म 'डेल्ही बेली' में राम सम्पत और चेतन शशितल ने सहगल साहब को श्रद्धांजली स्वरूप एक गीत की रचना की थी, जिसे मिली-जुली प्रतिक्रियाएं मिली थी। क्यों मिली थी दो विपरित प्रतिक्रियाएं? क्यों सहगल साहब की शैली में इस गीत की रचना की गई थी इस फ़िल्म के लिए? चलिए आज इन सवालों पर से परदा उठाया जाए!