क्रांतिवीरों की जब भी बात होगी उस श्रेणी में भगत सिंह का नाम सबसे ऊपर होगा। ग़ुलाम देश की आज़ादी के लिए अपनी जवानी तथा संपूर्ण जीवन भगत सिंह ने देश के नाम लिख दिया। शहीद भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर 1907 ई. को पंजाब के ज़िला लायलपुर गाँव बंगा (पाकिस्तान ) में हुआ। इनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह, माता का नाम विद्यावती कौर व चाचा का नाम सरदार अजीत सिंह था।इनका परिवार देशभक्त और इंकलाबी परिवार था। जिसका प्रभाव भगत सिंह पर पड़ना स्वाभाविक ही था।भगत सिंह की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के प्राइमरी स्कूल से हुई। प्राथमिक शिक्षा पूरी होने के पश्चात 1916-17 ई. में इनका दाख़िला लाहौर के डी.ए. वी. स्कूल में करा दिया गया।
भगत सिंह का सम्बन्ध देशभक्त परिवार से होने के कारण वे शूरवीरों की कहानियाँ सुनकर बड़े हुए। साथ ही विद्यालय में उनका संपर्क लाला लाजपतराय तथा अंबा प्रसाद जैसे क्रांतिकारियों से हुआ। उनकी संगति में आकर अब भगत सिंह के अंदर देशभक्ति का ज्वालामुखी सुलगने लगा
13अप्रैल 1919 ई. जलियाँवाला बाग  में बैसाखी वाले दिन अंग्रेज़ अफ़सर जनरल डायर ने हज़ारों की संख्या में एकत्रित लोगों पर गोलियाँ बरसा कर उनकी हत्या कर दी। इस दुखांत का भगत सिंह के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा।
30अक्तूबर 1928 ई. में साइमन कमीशन के लाहौर पहुँचने पर ' नौजवान भारत सभा ' ने इसका विरोध करते हुए जुलूस निकाला। इस जुलूस का नेतृत्व लाला लाजपतराय कर रहे थे।अंग्रेज़ों ने जुलूस पर लाठियाँ बरसा दीं।जिसमें लाला लाजपत राय बुरी तरह से घायल हो गए। कुछ दिनों बाद उनकी मृत्यु हो गई। भगत सिंह ने लाला जी की मृत्यु का बदला अंग्रेज़ अफ़सर सांडर्स की हत्या कर के लिया।
भगत सिंह तथा बटुकेश्वर दत्त ने 8अप्रैल 1929 ई. को केन्द्रीय विधानसभा में बम फेंककर अंग्रेज़ी सरकार की क्रूरता का जवाब दिया। फिर उन्होंने 'इन्कलाब ज़िंदाबाद' के नारे लगाते हुए अपने आपको गिरफ़्तार करवा दिया । उन्हें जेल हो गई। जेल में लिखें उनके ख़तों और लेखों से उनके विचारों का पता चलता है कि वे अपने देश और देशवासियों  से कितना प्रेम करते थे।
23 मार्च 1931 ई. शाम को भगत सिंह ,राजगुरु और सुखदेव को निश्चित दिन से एक दिन पहले ही फांसी दे दी गई। उनकी फांसी से भारतीय जनता कहीं भड़क कर किसी आंदोलन पर न उतर आए। इस डर से अंग्रेज़ों ने उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े करके दूर हुसैनीवाला में मिट्टी का तेल डालकर जला दिए।
जिस वक़्त भगत सिंह को फांसी दी गई। तब वे केवल 23 वर्ष के थे। उन्होंने स्वयं से पहले सदैव अपने देश और देशवासियों को प्राथमिकता दी।इसीलिए उनके बलिदान के इतने वर्षों बाद भी वे हम सब के दिलों में जीवित हैं तथा नवयुवकों के लिए हमेशा प्रेरणास्रोत रहेंगे।