पंद्रहवां अध्याय – सती की तपस्या
इस अध्याय में ब्रह्माजी नारद को बताते हैं कि वे एक दिन नारद के साथ प्रजापति दक्ष के घर गए। वहाँ उन्होंने देवी सती को देखा और आशीर्वाद दिया कि वे भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करेंगी, क्योंकि वे दोनों एक-दूसरे के योग्य हैं।
इसके बाद सती ने अपनी माता से भगवान शिव को प्राप्त करने की इच्छा बताई और माता की अनुमति से घर पर ही भगवान शिव की तपस्या आरंभ कर दी। वे आश्विन से लेकर भाद्रपद तक पूरे वर्षभर विभिन्न मासों, तिथियों और विधियों से भगवान शिव का व्रत, उपवास, पूजन और स्मरण करती रहीं।
सती ने द्वादशवर्षीय नंदा व्रत का पालन किया और कठोर तप किया। अंत में उनकी तपस्या को देख सभी देवता, ब्रह्मा और विष्णु सहित, कैलाश पर्वत पर जाकर भगवान शिव से उनकी स्तुति करते हैं।
यह अध्याय देवी सती की अटल भक्ति, धैर्य, और संकल्प शक्ति का महान उदाहरण प्रस्तुत करता है।
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