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आज से 2600 साल पहले वैदिक युग में महर्षि सुश्रुत ने पहली प्लास्टिक सर्जरी कि थी। वे काशी यानि आज के बनारस में रहा करते थे। वे एक राज वैद्य थे और युद्ध में घायल हुए सिपाहियों का उपचार करते थे। हम उस समय कि बात कर रहे हैं जब राजा महाराजा दंड के रूप में नाक कान काट देने का हुक्म दे देते थे। इसी स्थिति से प्रेरित होकर सुश्रुत ने राइनोप्लास्टी यानि नाक की प्लास्टिक सर्जरी का आविष्कार किया। उन्होंने ही सबसे पहले मोतिया बिन्द या कैटरेक्ट की सर्जरी भी की थी। कुल मिलाकर वैदिक काल के इस महा ऋषि ने तीन सौ तरह की सर्जरी का आविष्कार किया।
शरीर के विभिन्न भागों के उपचार के लिए अलग-अलग प्रकार के उपकरणों की ज़रूरत होती थी और इसी आवश्यकता को पूरा करने के लिए उन्होंने ‘एक सौ इक्कीस तरह के चिकित्सा उपकरणों का आविष्कार किया जिनका आधुनिक रूप आज भी हर अस्पताल में मिल सकता है। उनके बनाये इन उपकरणों के अकार जीव जंतुओं और पक्षियों की चोंच से प्रेरित थे। उनका ज्ञान दूरदर्शी था और समय की कसौटी पर खरा उतरा।
संस्कृत में सर्जरी को शल्य चिकित्सा कहा जाता है। उन्होंने अपने आविष्कारों और शल्य चिकित्सा के ज्ञान को संस्कृत में एक पुस्तक का रूप दिया जिसे सुश्रुत समहिता कहा जाता है. यह पुस्तक आयुर्वेद के तीन स्तम्भों में से एक है और आयुर्वेद के प्रोफेशनल डिग्री BAMS यानि Bachelor of Ayurvedic Medicine and Surgery का मुख्या अंग है।
उन्होंने मृत शरीर के सड़ने के हर एक स्तर पर उसका परिक्षण किया जिससे उन्हें शरीर की हर एक परत और स्थिती का विस्तृत ज्ञान हुआ और इसी से उन्हें Caesarean, पेट की सर्जरी, मस्तिष्क से जुड़े दोषों और कई प्रकार की सर्जरी के लिए ज़रूरी ज्ञान भी मिला।
आज अगर कोई चिकित्सक बनना चाहे तो उसे बहुत पढाई करनी होती है और एक अच्छे मेडिकल कॉलेज में भर्ती होने होता है पर हम उस समय की बात कर रहे हैं जब मृत शरीर को पवित्र माना जाता था और पढ़ाई के लिए शरीर का मिलना असंभव होता था। सुश्रुत को मानव शरीर को समझने के लिए गंगा में बहाये शवों पर निर्भर रहना होता था। उनके प्रयोगों के बारे में जानकर उन्हें न तो किसी धर्म अनुष्ठान में बुलाया जाता था और उनके लिए किसी भी पवित्र स्थल पर जाना वर्जित था। उन्होंने समाज के दुर्व्यवहार और बहिष्कार से लड़कर अपने ज्ञान अर्जन की यात्रा चलायमान रखी और उसे कुशलता से अगली पीढ़ी को सिखाया और बाँटा भी।
सुश्रुत समहिता लगभग 200 BCE में लिखी गई थी। और सुश्रुत ने ये सब बिना किसी आधुनिक उपकरण के किया था। तो सोचिये, जिसने सर्जरी का इन्वेंशन किया, उपकरण बनाए, उसने सर्जरी के समय इस्तेमाल करने के लिए किसी प्रकार के ऑप्टिकल उपकरण जैसे लेंस भी ज़रूर बनाये होंगे।
आठवे शतक में सुश्रुत संहिता दुनिया के सामने आई अपने अरबी अनुवाद के साथ जिसका नाम था शाह शुन अल- हिंदी। उन्नीसवीं शताब्दी में डॉक्टर फ्रांसिस्कस हस्लर ने इसका अनुवाद लैटिन में और मैक्स म्युलर ने जर्मन भाषा में किया जिससे सुश्रुत के ज्ञान को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति मिली पर समय के साथ उन्हें भुला भी दिया गया।
1907 में सुश्रुत समहिता का पहला अंग्रेजी अनुवाद कोलकाता के कविराज कुंजलाल ने किया पर इस किताब को कुछ ख़ास ख्याति नहीं मिली।
बीसवीं शताब्दी में दुनिया की सोच आयुर्वेद की ओर बदलने लगी और सुश्रुत समहिता को प्राचीन भारतीय चिकित्सा का बहुमूल्य साहित्य ग्रन्थ माना लिया गया। 600 इसा पूर्व का वह समय आज Golden age of Surgery के नाम से जाना जाता है।
सुश्रुत का मानना था की जो व्यक्ति चिकित्सा से जुड़ा हो उसका मन और चित्त संतुलित होना बहुत आवश्यक है।
सुश्रुत का मतलब होता है जिसकी ख्याति के बारे में सबने सुना हो और देखिये आज दुनिया भर में लोग उन्हें Father of surgery के नाम से जानते हैं।
आज से 2600 साल पहले वैदिक युग में महर्षि सुश्रुत ने पहली प्लास्टिक सर्जरी कि थी। वे काशी यानि आज के बनारस में रहा करते थे। वे एक राज वैद्य थे और युद्ध में घायल हुए सिपाहियों का उपचार करते थे। हम उस समय कि बात कर रहे हैं जब राजा महाराजा दंड के रूप में नाक कान काट देने का हुक्म दे देते थे। इसी स्थिति से प्रेरित होकर सुश्रुत ने राइनोप्लास्टी यानि नाक की प्लास्टिक सर्जरी का आविष्कार किया। उन्होंने ही सबसे पहले मोतिया बिन्द या कैटरेक्ट की सर्जरी भी की थी। कुल मिलाकर वैदिक काल के इस महा ऋषि ने तीन सौ तरह की सर्जरी का आविष्कार किया।
शरीर के विभिन्न भागों के उपचार के लिए अलग-अलग प्रकार के उपकरणों की ज़रूरत होती थी और इसी आवश्यकता को पूरा करने के लिए उन्होंने ‘एक सौ इक्कीस तरह के चिकित्सा उपकरणों का आविष्कार किया जिनका आधुनिक रूप आज भी हर अस्पताल में मिल सकता है। उनके बनाये इन उपकरणों के अकार जीव जंतुओं और पक्षियों की चोंच से प्रेरित थे। उनका ज्ञान दूरदर्शी था और समय की कसौटी पर खरा उतरा।
संस्कृत में सर्जरी को शल्य चिकित्सा कहा जाता है। उन्होंने अपने आविष्कारों और शल्य चिकित्सा के ज्ञान को संस्कृत में एक पुस्तक का रूप दिया जिसे सुश्रुत समहिता कहा जाता है. यह पुस्तक आयुर्वेद के तीन स्तम्भों में से एक है और आयुर्वेद के प्रोफेशनल डिग्री BAMS यानि Bachelor of Ayurvedic Medicine and Surgery का मुख्या अंग है।
उन्होंने मृत शरीर के सड़ने के हर एक स्तर पर उसका परिक्षण किया जिससे उन्हें शरीर की हर एक परत और स्थिती का विस्तृत ज्ञान हुआ और इसी से उन्हें Caesarean, पेट की सर्जरी, मस्तिष्क से जुड़े दोषों और कई प्रकार की सर्जरी के लिए ज़रूरी ज्ञान भी मिला।
आज अगर कोई चिकित्सक बनना चाहे तो उसे बहुत पढाई करनी होती है और एक अच्छे मेडिकल कॉलेज में भर्ती होने होता है पर हम उस समय की बात कर रहे हैं जब मृत शरीर को पवित्र माना जाता था और पढ़ाई के लिए शरीर का मिलना असंभव होता था। सुश्रुत को मानव शरीर को समझने के लिए गंगा में बहाये शवों पर निर्भर रहना होता था। उनके प्रयोगों के बारे में जानकर उन्हें न तो किसी धर्म अनुष्ठान में बुलाया जाता था और उनके लिए किसी भी पवित्र स्थल पर जाना वर्जित था। उन्होंने समाज के दुर्व्यवहार और बहिष्कार से लड़कर अपने ज्ञान अर्जन की यात्रा चलायमान रखी और उसे कुशलता से अगली पीढ़ी को सिखाया और बाँटा भी।
सुश्रुत समहिता लगभग 200 BCE में लिखी गई थी। और सुश्रुत ने ये सब बिना किसी आधुनिक उपकरण के किया था। तो सोचिये, जिसने सर्जरी का इन्वेंशन किया, उपकरण बनाए, उसने सर्जरी के समय इस्तेमाल करने के लिए किसी प्रकार के ऑप्टिकल उपकरण जैसे लेंस भी ज़रूर बनाये होंगे।
आठवे शतक में सुश्रुत संहिता दुनिया के सामने आई अपने अरबी अनुवाद के साथ जिसका नाम था शाह शुन अल- हिंदी। उन्नीसवीं शताब्दी में डॉक्टर फ्रांसिस्कस हस्लर ने इसका अनुवाद लैटिन में और मैक्स म्युलर ने जर्मन भाषा में किया जिससे सुश्रुत के ज्ञान को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति मिली पर समय के साथ उन्हें भुला भी दिया गया।
1907 में सुश्रुत समहिता का पहला अंग्रेजी अनुवाद कोलकाता के कविराज कुंजलाल ने किया पर इस किताब को कुछ ख़ास ख्याति नहीं मिली।
बीसवीं शताब्दी में दुनिया की सोच आयुर्वेद की ओर बदलने लगी और सुश्रुत समहिता को प्राचीन भारतीय चिकित्सा का बहुमूल्य साहित्य ग्रन्थ माना लिया गया। 600 इसा पूर्व का वह समय आज Golden age of Surgery के नाम से जाना जाता है।
सुश्रुत का मानना था की जो व्यक्ति चिकित्सा से जुड़ा हो उसका मन और चित्त संतुलित होना बहुत आवश्यक है।
सुश्रुत का मतलब होता है जिसकी ख्याति के बारे में सबने सुना हो और देखिये आज दुनिया भर में लोग उन्हें Father of surgery के नाम से जानते हैं।