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यह श्लोक श्री भगवद गीता के 3.77 का अंश है। इसमें संजय धृतराष्ट्र से कहते हैं:
"राजन! उस अद्भुत रूप को बार-बार स्मरण करते हुए, भगवान श्री कृष्ण के रूप की महिमा को याद करके मुझे अत्यधिक विस्मय और आनंद हो रहा है। बार-बार मुझे उस रूप का स्मरण करने पर हर्षित अनुभव हो रहा है।"
संजय यहाँ भगवान श्री कृष्ण के दिव्य रूप की अद्भुतता और उसकी महिमा का वर्णन कर रहे हैं। उनके रूप की भव्यता और दिव्यता को स्मरण करते हुए संजय को विस्मय और संतोष प्राप्त हो रहा है।
Here are some hashtags you can use for this shloka:
#BhagavadGita #Sanjay #Krishna #DivineForm #SacredWisdom #SpiritualAwakening #AncientPhilosophy #GitaShloka #DivinePresence #SacredText #Yoga #Vismaya #DivineMajesty #InnerJoy #SpiritualJourney
By Yatrigan kripya dhyan de!यह श्लोक श्री भगवद गीता के 3.77 का अंश है। इसमें संजय धृतराष्ट्र से कहते हैं:
"राजन! उस अद्भुत रूप को बार-बार स्मरण करते हुए, भगवान श्री कृष्ण के रूप की महिमा को याद करके मुझे अत्यधिक विस्मय और आनंद हो रहा है। बार-बार मुझे उस रूप का स्मरण करने पर हर्षित अनुभव हो रहा है।"
संजय यहाँ भगवान श्री कृष्ण के दिव्य रूप की अद्भुतता और उसकी महिमा का वर्णन कर रहे हैं। उनके रूप की भव्यता और दिव्यता को स्मरण करते हुए संजय को विस्मय और संतोष प्राप्त हो रहा है।
Here are some hashtags you can use for this shloka:
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