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श्री मद भागवत कथा-5 श्री कुंती एव श्री भीष्म जी भगवान की स्तुति Premanand ji Maharaj


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कुंती ने श्री कृष्ण से दुःख का वरदान माँगा था, जो उनके जीवन में ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव करने के लिए था, और भीष्म पितामह ने अपनी मृत्यु के समय श्री कृष्ण के चरणों में लीन होकर उन्हें परम सत्य के रूप में देखा और परम शांति पाई। दोनों स्तुतियों का मूल भाव यह है कि सुख-दुख में ईश्वर को याद रखना चाहिए और भक्त का एकमात्र सहारा हरिनाम है। 






कुंती स्तुति


  • कुंती स्तुति में कुंती महारानी ने भगवान श्रीकृष्ण से दुःख का वरदान माँगा था, ताकि वे अपने जीवन में भगवान की उपस्थिति को महसूस कर सकें। 



  • यह शिक्षा देती है कि जीवन के सुख-दुख में ईश्वर का सहारा लेना चाहिए और उसके प्रति समर्पित रहना चाहिए। 



  • कुंती ने भगवान को कमल के समान शुद्ध और सुंदर बताया, जो कीचड़ में खिलता है। 





    भीष्म स्तुति


    • भीष्म पितामह ने अपनी मृत्यु के समय, जब वे अपने देह का त्याग कर रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति की। 



    • इस स्तुति में, भीष्म ने भगवान के उस रूप का दर्शन किया जो सभी के हृदय में निवास करता है, भले ही प्रत्येक व्यक्ति उसे अलग-अलग तरीकों से देखता है। 



    • भीष्म स्तुति का एक महत्वपूर्ण भाग वेदांत के सर्वोच्च सत्यों को दर्शाता है, जो यह बताता है कि जो हममें है, वही दूसरों में भी है। 



    • यह दर्शाता है कि परम सत्य का अनुभव सभी द्वैतभाव को पार करके ही किया जा सकता है, और भगवान ही सबके हृदय में निवास करते हैं। 
    • Parmanand ji maharaj
    • Ramayan
    • Mahabharat
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