यदि रक्त बूँद भर भी होगा कहीं बदन में
नस एक भी फड़कती होगी समस्त तन में
यदि एक भी रहेगी बाक़ी तरंग मन में
हर एक साँस पर हम आगे बढ़े चलेंगे
वह लक्ष्य सामने है पीछे नहीं टलेंगे
मंज़िल बहुत बड़ी है पर शाम ढल रही है
सरिता मुसीबतों की आग उबल रही है
तूफ़ान उठ रहा है, प्रलयाग्नि जल रही है
हम प्राण होम देंगे, हँसते हुए जलेंगे
पीछे नहीं टलेंगे, आगे बढ़े चलेंगे
अचरज नहीं कि साथी भग जाएँ छोड़ भय में
घबराएँ क्यों, खड़े हैं भगवान जो हृदय में
धुन ध्यान में धँसी है, विश्वास है विजय में
बस और चाहिए क्या, दम एकदम न लेंगे
जब तक पहुँच न लेंगे, आगे बढ़े चलेंगे !