स्वर्ग और नर्क की परिकल्पना केवल मनुष्य के लिए जानवरों के लिए नहीं क्योंकि जानवरों का जो जीवन है वह केवल भोग के लिए योग के लिए नहीं है जानवर के पास कोई ऑप्शन नहीं है कि अपनी चेतना को ऊपर उठा पाए यदि उनकी चेतना ऊपर नहीं उठती है तो उनके पास एक सिक्योरिटी भी है कि उनकी चेतना नीचे भी नहीं जाती मतलब जिस लेवल पर उनकी चेतना जन्म के समय रहती है उसी लेवल पर वह हमेशा बनी रहती है लेकिन मनुष्य के साथ ऐसा नहीं है यदि मनुष्य इंसानियत से भरा जीवन जी रहा है करुणा दया सहयोग खुशी आनंद आदि से भरपूर जीवन जी रहा उसकी चेतना ऊपर की तरफ जा रही है अन्यथा उसकी चेतना नीचे की तरफ चली जाएगी यदि वह काम क्रोध लोभ मोह इससे देश जलन इस से परिपूर्ण जीवन जी रहा है यही पहचान है अपनी चेतना को समझने का यदि हमारे अंदर दया करुणा क्षमा आनंद खुशी प्रसन्नता सहयोग यह सब चीजें बढ़ रही है तो साफ है कि हमारी चेतना का उत्तरोत्तर विकास हो रहा है और यदि यह चीजें नहीं बढ़ रही है तो हमारी चेतना निम्रता की तरफ जा रही है अब हमारी चेतना का विकास होता है स्वर्गीय जीवन जीते हैं। और जब हमारी चेतना नेता की तरफ जाती है कोन्नर्क से परिपूर्ण जीवन जीते हैं। यही जीवन स्वर्ग और नरक है यदि हम विकारों के वशीभूत होकर के जीवन जीने तो जीवन में नर्क है और यदि हम दया करुणा प्रेमानंद से परिपूर्ण जीवन मस्ती भरा जीवन जी रहे और दूसरों को भी यह जीवन जीने में मदद कर रहे हैं तो हमारा जीवन स्वर्ग में है यही स्वर्ग और नरक की पहचान धन्यवाद धन्यवाद