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तन्हाई । शहरयार
अँधेरी रात की इस रहगुज़र पर
हमारे साथ कोई और भी था
उफ़ुक़* (क्षितिज) की सम्त* (दिशा) वो भी तक रहा था
उसे भी कुछ दिखाई दे रहा था
उसे भी कुछ सुनाई दे रहा था
मगर ये रात ढलने पर हुआ क्या
हमारे साथ अब कोई नहीं है
By Nayi Dhara Radioतन्हाई । शहरयार
अँधेरी रात की इस रहगुज़र पर
हमारे साथ कोई और भी था
उफ़ुक़* (क्षितिज) की सम्त* (दिशा) वो भी तक रहा था
उसे भी कुछ दिखाई दे रहा था
उसे भी कुछ सुनाई दे रहा था
मगर ये रात ढलने पर हुआ क्या
हमारे साथ अब कोई नहीं है