Share TeacherParv: Celebrating Learning
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By Parveen Sharma
The podcast currently has 169 episodes available.
ताशकंद से चल रही हमारी बातों में इस बार आया है संगीत - भारत से ही! कैलाश खेर (कैलासा बैंड) ने अद्भुत प्रस्तुति दी और घर से दूर, एक अपनापन सौंपा। इस कड़ी के आरंभ में जो वाद्ययंत्र आप सुनेंगे, वो वहीं से रिकॉर्ड किया गया है। और भी बहुत सारी बातें हैं, अनुभव हैं और योजनाएं भी हैं। आइए सुनते हैं - ताशकंद से बातें!
Ep23_ताशकंद से बातें_Tashkent Diaries_कैलाश खेर, दिवाली आगमन, इतिहास, मौसम, जलेबी, कविताएँ, इकोबाज़ार इत्यादि
ताशकंद डायरीज़ की अक्टूबर माह की कड़ी, बाईसवाँ पड़ाव, भारतीय समुदाय की दुर्गा पूजा, अचानक बारह साल पुराने स्टूडेंट रोहित से मिलना, बहार-दूत पतझड़ का आगमन, घर का ज़िक्र, शब्दों का सप्तक पुस्तक की ज़िम्मेदारी, प्रिय गुरु भाई विनीत बंसल के बारे में, जीवन की सकारात्मकता और भी कुछ बातें!
Ep22_ताशकंद से बातें_Tashkent Diaries_दुर्गा पूजा, फुटसाल विश्व कप, रोहित जोशी, जोगी समुदाय, शब्दों का सप्तक
14 सितंबर को हिंदी दिवस पूरी दुनिया में, जहां भी हिंदी को मानने वाले हैं, छोटे-बड़े या व्यक्तिगत स्तर पर मना लिया जाता है। ताशकंद में रहते हुए हिंदी के प्रति जो सम्मान मिला है, वह अद्भुत है। हिंदी हमें विश्व की हर भाषा को अपनाना सिखाती है।
आप सभी को हिंदी दिवस की शुभकानाएं!
आदरणीय विनोद कुमार शुक्ल
नरेश सक्सेना जी
बाबा नागार्जुन
मित्र और अग्रज डॉ मनीष कुमार मिश्रा जी की कवितायेँ।
मैंने खत में तुमको क्या लिखा था,
मुझे याद नहीं
शायद लिखा था तुमको
कि जल्दी लौटूंगा
लौटूंगा वैसा ही
जैसा गया था यहां से
लौटूंगा शून्य होकर
शायद लौटूंगा किसी कवि की तरह
पहले से बेहतर होकर
या फिर घर से भागकर गए
शहजादे की तरह
लौटूंगा गलत पते से होकर
सही पते पहुंचे किसी खत की तरह
लौटूंगा शायद हर बरस छज्जे से गिरने वाली
मौसम की पहली बारिश की तरह
जब भी लौटूंगा
लौटूंगा तुमसे मिलने के इंतजार में
लौटूंगा जरूर...
लौटूंगा तुम्हारे लिए.......
Ep20_ताशकंद से बातें_Tashkent Diaries_September's Entry_पतझड़ लायी बहार, ताशकंद में भारत, कत्थक, सितार, हिंदी, दोस्त, भावों का दूसरा हफ़्ता
जब आप अपने देश से किसी दूसरे देश में जाते हैं तो लगता है सारा देश, उसमें रहने वाले करोड़ों करोड़ों लोग, उनके विचार-व्यवहार, ख़ान पान, तीज त्योहार, चिंता और ख़ुशी दोनों, उम्मीदें भी और हताशाएँ भी, सब साथ आ जाती हैं! बिना किसी वजन के। ना वीज़ा अलग से लगता उनका ना कोई और जाँच होती है।
हम ख़ुद नहीं चलते, जिन्हें हम मानते हैं और जिनकी हम मानते हैं - चलाते तो हमें वो हैं।
विनम्र और कृतज्ञ, शुक्रगुज़ार, रहना ज़रूरी है बस।
नमस्कार दोस्तों, मेरा नाम परवीन शर्मा है। आप मुझे फिर से सुन रहें हैं
ताशकंद डायरीज में। पॉडकास्ट का नाम है टीचर पर्व पॉडकास्ट्स।
ये यात्रा एक हिम्मती विराम - विश्राम के बाद फिर से शुरू हुई है। जैसा कि मैंने कहा कि हमें चलाते और बनाते वो हैं जिनकी और जिनको हम मानते हैं, जो हर परिस्थिति में हमारा साथ ही देते हैं। मेरे लिये ये मेरा परिवार, गुरुजन, दोस्त और इन तीनों रूपों में वो जो मेरे स्टूडेंट्स हैं - ये हैं वो लोग, जिनको और जिनकी बात को मानना मुझे आया है इस विश्राम में। जीवन के चौथे दशक में प्रवेश इतनी तसल्ली के साथ होगा, ये सोचा ना था। धन या पद की बात नहीं, यहाँ तो बात अपने सौभाग्य की है। अच्छा करने का अवसर मिल जाना है पहले जो अच्छा किया उसका फल है। मेरे लिये यही भगवद् गीता का संदेश और सीख और सार है।
अब लौटे हैं ताशकंद डायरीज में तो औपचारिक भूमिका भी कह देते हैं।
उज़बेकिस्तान के प्रति अत्यंत आदर और धन्यवाद के साथ
क्योंकि अगर वापस बुलाया ही है, तो ये धरती कुछ ख़ास जादू रखती है। लोग कुछ ज़्यादा मुहब्बत और आबो हवा कुछ दैवीय। मेरे लिये तो ये भाव सच ही प्रतीत होता है।
मौसमों की तरह हम भी वापस लौट आते हैं, उनका अपना कायदा है, समय है और ज़िम्मेदारी है - और हमारा भी लगभग वैसा सा ही विधान हैं।
मार्च 2024 में भारत लौटने के बाद, अगस्त 2024 में फिर से उज़्बेकिस्तान ने अपने ताशकंद में बुलाकर नयी ज़िम्मेदारी सौंप दी है। पढ़ाने वाले का जीवन भाग्य और दुआओं पर बहुत टिका हुआ है। मुझे ये लगा कि दुआओं ने भाग्य को परिभाषित करते हुए मुझे फिर समय दिया है।
लम्बा अरसा बीत गया और लगा भी नहीं कि ताशकंद से बातों की उन्नीसवीं कड़ी 10 महीने बाद आ रही है।
जुड़े रहिएगा, जोड़े और संभाले रखियेगा!
तस्वीरें थोड़ी नयीं हैं, रंग और साथ वही पुराना, अटूट और ईमानदार!
स्वागत है, एक बार फिर से - ताशकंद डायरीज़ "ताशकंद से बातें - टीचर पर्व पॉडकास्टस पर!
धन्यवाद्!
Learning for Life - Life for Learning: with GJU STP 9 August
स्वानंद किरकिरे की पुस्तक 'आप कमाई' से कुछ कवितायेँ और हमारा गुस्सा, नाराज़गी कैसे एक ज़हरीला पेड़ बन जाती है, ये बात भी ।
विलियम ब्लेक की कविता 'A Poison Tree' से सीखा हुआ कुछ आपसे सांझा भी करना है ताकि स्वयं न भूलूँ!
A Poison TreeBY WILLIAM BLAKEI was angry with my friend;
I told my wrath, my wrath did end.
I was angry with my foe:
I told it not, my wrath did grow.
And I waterd it in fears,
Night & morning with my tears:
And I sunned it with smiles,
And with soft deceitful wiles.
And it grew both day and night.
Till it bore an apple bright.
And my foe beheld it shine,
And he knew that it was mine.
And into my garden stole,
When the night had veild the pole;
In the morning glad I see;
My foe outstretched beneath the tree.
TeacherParv Podcasts की ओर से आपका स्वागत है!
आप हमें YouTube पर भी सुन सकते हैं- https://www.youtube.com/watch?v=KtPMENc4NRM&list=PLpzDJV76UXQfH7eEmHMsFO7luPNEjdkP6&ab_channel=ParveenSharma
अपने विचार, सुझाव आप सोशल मीडिया के माध्यम से अमित जी तक या मुझ तक पहुँचा सकते हैं।
एक बार फिर से, कुछ बेहद ज़रूरी और सार्थक - विद्यांतरिक्ष पॉज़िटिव पेरैंटिंग श्रृंखला - 02 - प्रवीण शर्मा के साथ!
Vidyantriksh Positive Parenting Series by Sh Amit Dagar & Parveen Sharma is available on all leading Podcasting Platforms and EklavyaParv.com, Sh Amit Dagar's Facebook Profile as well.
Playlist on Spotify: https://open.spotify.com/playlist/6TOGkwtNImkOG0eSlYhaqW?si=910c986de03049b2
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