Zehan

Tum Hi Ho


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तुम ही हो


उनकी रात जो मख़मल सी सिलवट पर गुज़रती है।

मेरी तो छत भी तुम, बहती हवा, तुम ही सितारा हो।

"ज़ेहन" तुम ही हो उगता चाँद, हर इक नज़ारा हो।।

 

लो माना डूब जाते है वो अक्सर एक दूजे में।

तुम्हारी आंख उर्दू, मेरी नज़्मों का सहारा हो।

"ज़ेहन" तुम ही हो ढलती शाम, सागर का किनारा हो।

 

दो तरफा प्यार है जिनको, महज़ इक बार जीतेगा।

एक मेरा प्यार है जो रोज़ जीता, फिर भी हारा है;

"ज़ेहन" इस प्यार में रो रोकर हंसना भी गवारा है।।

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ZehanBy Ayan Sharma