DHADKANE MERI SUN

TUM - MAI...aur HAMARE AHSAS


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क्या खूब समा था 

इश्क़ के महीने में - इश्क़ जवां था  मौसम के थे नजारे  आंखों के थे इशारे  बातों में कशिश थी इतनी  लहजे में तपिश थी इतनी  जिस्म था - आग थी  हर छुअन में एक धुआं था  हसीना थी कमसिन  दीवाना जवां था  इश्क़ के महीने में इश्क़ भी जवां था  .....ऐसे ही थे एहसास हमारे.....
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DHADKANE MERI SUNBy Dr. Rajnish Kaushik