अल्हड बनारसी

तुम फिर ना वापस आए थे


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तुम फिर ना वापस आए थे
बहुत बिताया व्यक्त मगर तुम ना आए थे
सारे घाट रहे यूं व्यस्त मगर तुम ना आए थे
गुज़र गए फिर व्यक्त मगर तुम ना आए थे
गुजर गयीं जो बातें ना अब कर पाए थे
उन यादों के दीप तले तुम कब रह पाए थे
बहुत बिताया व्यक्त मगर तुम ना आए थे
सारे घाट रहे यूं व्यस्त मगर तुम ना आए थे
कल भी थे तुम यादों मे क्यू फिर आए थे
भूल गया जो हुआ ना फिर कुछ कर पाए थे
गुज़र गयी वो शाम मगर तुम ना आए थे
बहुत अभी तक चला ना फिर तुम आए थे
बहुत बिताया व्यक्त मगर तुम ना आए थे
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अल्हड बनारसीBy Sharad Dubey