Ukti

Tumhe pasand hain hastshilp


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तुम्हे पसंद हैं हस्तशिल्प, मुझे दस्तकार- इसलिए क्योंकि तुम भी वही हो; अपनी बाहों-लहरों को जैसे हर कुछ क्षण किनारों पर भेज-भेज समंदर आकार देता रहता है आड़े-तिरछे पत्थरों को, वैसे ही तुम्हारी हर हँसी के साथ तुम्हारे गाल के हिलकोरे हर बार ऐसे छू जाते हैं हृदय को, जैसे कोई प्रीतिकर, धीरे-धीरे प्रतिनव निर्माण कर रहा हो किसी प्राचीन प्रतिमा का। -अमनदीप पँवार (12th March 2020), Episode photograph by Preetika Jain
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UktiBy Amandeep Panwar