तुमसे मिलने के बाद, लौटते वक्त, ऐसा लगने लगता है, जैसे मैं, महका किसी मेंथा के खेत से वापस लौट आ रहा हूँ शहर की ओर; और फिर कुछ दिनों बाद, मेरे हृदय में, तुम्हारी बोई हुई हर जड़ कल्ले फोड़ने लगती हैं भीतर, जो ओज भरे पौधा बनने को बढ़ने लगते हैँ तुम्हारी ही ओर। इसमें प्रीतिकर-निरंतर सीचना होता है कईं बार हर उस पौधे को जिसको तुमने अपने हाथों से लगाया था; पर सोचो ज़रा क्या संभव है इनका बढ़ना बिना तुम्हारे मुस्कुराते सूर्य के बिना?
-अमनदीप पँवार
(19 March 2020), Episode photograph by Preetika Jain