~"हाँ मैं दिल्ली हूँ!"~
दिलवालों की थी कभी, आज बेदिलों को अपने में समेटे हूँ, हाँ मैं दिल्ली हूँ!
सड़को पर फैले हुए इस शोर में मैं जिंदा हूँ, हाँ मैं दिल्ली हूँ!
रोशनी की चमक में नहाई, फुटपाथ पर सोई ज़िन्दगी हूँ, हाँ मैं दिल्ली हूँ!
कभी किन्ही सपनो में बसती, आज उलझनों में मैं उलझी हूँ, हाँ मैं दिल्ली हूँ!
धुंए के गुबार में उखड़ती हुई एक साँस हूँ, हाँ मैं दिल्ली हूँ!
ख़ुद में खोई हुई अनजान एक मंज़िल हूँ, हाँ मैं दिल्ली हूँ!
धोखे में भी किसी के भरोसे की चाह हूँ, हाँ मैं दिल्ली हूँ!
वफ़ा की खोज में एक बेवफ़ा की मैं आह हूँ, हाँ मैं दिल्ली हूँ!
लोगों की भीड़ में आज कितनी अनजान हूँ, हाँ मैं दिल्ली हूँ!
बेफ़िक्री में भी किसी की फ़िक्र हूँ, हाँ मैं दिल्ली हूँ!
अमीर की थाली के बर्बाद हुए खाने की मैं भूख हूँ, हाँ मैं दिल्ली हूँ!
"हाँ मैं दिल्ली हूँ!" क्योंकि आज मेरे अपनों की याद में हर रात मैं जगती हूँ। "हाँ मैं दिल्ली हूँ!"
#श्रेष्ठ