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Namaste!We will discuss one Ved mantra starting from Mandal 1, Sookt 1 and Mantra 1 of the Rigved. Then we shall cover Yajurved, Saamved and Atharva ved serial wise. The podcast's language is Hind... more
FAQs about Vedic Broadcast:How many episodes does Vedic Broadcast have?The podcast currently has 442 episodes available.
June 28, 2022ऋग्वेद मण्डल 1. सूक्त 23. मंत्र 14पू॒षा राजा॑न॒माघृ॑णि॒रप॑गूळ्हं॒ गुहा॑ हि॒तम्। अवि॑न्दच्चि॒त्रब॑र्हिषम्॥ - ऋग्वेद 1.23.14 पदार्थ -जिससे यह (आघृणिः) पूर्ण प्रकाश वा (पूषा) जो अपनी व्याप्ति से सब पदार्थों को पुष्ट करता है, वह जगदीश्वर (गुहा) (हितम्) आकाश वा बुद्धि में यथायोग्य स्थापन किये हुए वा स्थित (चित्रबर्हिषम्) जो अनेक प्रकार के कार्य्य को करता (अपगूढम्) अत्यन्त गुप्त (राजानम्) प्रकाशमान प्राणवायु और जीव को (अविन्दत्) जानता है, इससे वह सर्वशक्तिमान् है॥-------------------------------------------(भाष्यकार - स्वामी दयानंद सरस्वती जी)(सविनय आभार: www.vedicscriptures.in)...more4minPlay
June 27, 2022ऋग्वेद मण्डल 1. सूक्त 23. मंत्र 13आ पू॑षञ्चि॒त्रब॑र्हिष॒माघृ॑णे ध॒रुणं॑ दि॒वः। आजा॑ न॒ष्टं यथा॑ प॒शुम्॥ - ऋग्वेद 1.23.13 पदार्थ -जैसे कोई पशुओं का पालनेवाला मनुष्य (नष्टम्) खो गये (पशुम्) गौ आदि पशुओं को प्राप्त होकर प्रकाशित करता है, वैसे यह (आघृणे) परिपूर्ण किरणों (पूषन्) पदार्थों को पुष्ट करनेवाला सूर्यलोक (दिवः) अपने प्रकाश से (चित्रबर्हिषम्) जिससे विचित्र आश्चर्य्यरूप अन्तरिक्ष विदित होता है (धरुणम्) धारण करनेहारे भूगोलों को (आज) अच्छे प्रकार प्रकाश करता है॥-------------------------------------------(भाष्यकार - स्वामी दयानंद सरस्वती जी)(सविनय आभार: www.vedicscriptures.in)...more4minPlay
June 26, 2022ऋग्वेद मण्डल 1. सूक्त 23. मंत्र 12ह॒स्का॒राद्वि॒द्युत॒स्पर्यतो॑ जा॒ता अ॑वन्तु नः। म॒रुतो॑ मृळयन्तु नः॥ - ऋग्वेद 1.23.12 पदार्थ -हम लोग जिस कारण (हस्कारात्) अति प्रकाश से (जाताः) प्रकट हुई (विद्युतः) जो कि चपलता के साथ प्रकाशित होती हैं, वे बिजली (नः) हम लोगों के सुखों को (अवन्तु) प्राप्त करती हैं। जिससे उन को (परि) सब प्रकार से साधते और जिससे (मरुतः) पवन (नः) हम लोगों को (मृळयन्तु) सुखयुक्त करते हैं (अतः) इससे उनको भी शिल्प आदि कार्यों में (परि) अच्छे प्रकार से साधें॥-------------------------------------------(भाष्यकार - स्वामी दयानंद सरस्वती जी)(सविनय आभार: www.vedicscriptures.in)...more6minPlay
June 25, 2022ऋग्वेद मण्डल 1. सूक्त 23. मंत्र 11जय॑तामिव तन्य॒तुर्म॒रुता॑मेति धृष्णु॒या। यच्छुभं॑ या॒थना॑ नरः॥ - ऋग्वेद 1.23.11 पदार्थ -हे (नरः) धर्मयुक्त शिल्पविद्या के व्यवहारों को प्राप्त करनेवाले मनुष्यो ! आप लोग भी (जयतामिव) जैसे विजय करनेवाले योद्धाओं के सहाय से राजा विजय को प्राप्त होता और जैसे (मरुताम्) पवनों के संग से (धृष्णुया) दृढ़ता आदि गुणयुक्त (तन्यतुः) अपने वेग को अति शीघ्र विस्तार करनेवाली बिजुली मेघ को जीतती है, वैसे (यत्) जितना (शुभम्) कल्याणयुक्त सुख है, उस सबको प्राप्त हूजिये॥-------------------------------------------(भाष्यकार - स्वामी दयानंद सरस्वती जी)(सविनय आभार: www.vedicscriptures.in)...more4minPlay
June 24, 2022ऋग्वेद मण्डल 1. सूक्त 23. मंत्र 10विश्वा॑न्दे॒वान्ह॑वामहे म॒रुतः॒ सोम॑पीतये। उ॒ग्रा हि पृश्नि॑मातरः॥ - ऋग्वेद 1.23.10 पदार्थ -विद्या की इच्छा करनेवाले हम लोग (हि) जिस कारण से जो ज्ञान क्रिया के निमित्त से शिल्प व्यवहारों को प्राप्त करानेवाले (उग्राः) तीक्ष्णता वा श्रेष्ठ वेग के सहित और (पृश्निमातरः) जिनकी उत्पत्ति का निमित्त आकाश वा अन्तरिक्ष है, इससे उन (विश्वान्) सब (देवान्) दिव्यगुणों के सहित उत्तम गुणों के प्रकाश करानेवाले वायुओं को (हवामहे) उत्तम विद्या की सिद्धि के लिये जानना चाहते हैं॥-------------------------------------------(भाष्यकार - स्वामी दयानंद सरस्वती जी)(सविनय आभार: www.vedicscriptures.in)...more5minPlay
June 23, 2022ऋग्वेद मण्डल 1. सूक्त 23. मंत्र 9ह॒त वृ॒त्रं सु॑दानव॒ इन्द्रे॑ण॒ सह॑सा यु॒जा। मा नो॑ दुः॒शंस॑ ईशत॥ - ऋग्वेद 1.23.9 पदार्थ -हे विद्वान् लोगो ! आप जो (सुदानवः) उत्तम पदार्थों को प्राप्त कराने (सहसा) बल और (युजा) अपने आनुषङ्गी (इन्द्रेण) सूर्य्य वा बिजुली के साथी होकर (वृत्रम्) मेघ को (हत) छिन्न-भिन्न करते हैं, उनसे (नः) हम लोगों के (दुःशंसः) दुःख करानेवाले (मा) (ईशत) कभी मत हूजिये॥-------------------------------------------(भाष्यकार - स्वामी दयानंद सरस्वती जी)(सविनय आभार: www.vedicscriptures.in)...more4minPlay
June 22, 2022ऋग्वेद मण्डल 1. सूक्त 23. मंत्र 8इन्द्र॑ज्येष्ठा॒ मरु॑द्गणा॒ देवा॑सः॒ पूष॑रातयः। विश्वे॒ मम॑ श्रुता॒ हव॑म्॥ - ऋग्वेद 1.23.8 पदार्थ -जो (पूषरातयः) सूर्य्य के सम्बन्ध से पदार्थों को देने (इन्द्रज्येष्ठाः) जिनके बीच में सूर्य्य बड़ा प्रशंसनीय हो रहा है और (देवासः) दिव्य गुणवाले (विश्वे) सब (मरुद्गणाः) पवनों के समूह (मम) मेरे (हवम्) कार्य्य करने योग्य शब्द व्यवहार को (श्रुत) सुनाते हैं, वे ही आप लोगों को भी॥-------------------------------------------(भाष्यकार - स्वामी दयानंद सरस्वती जी)(सविनय आभार: www.vedicscriptures.in)...more6minPlay
June 22, 2022ऋग्वेद मण्डल 1. सूक्त 23. मंत्र 7म॒रुत्व॑न्तं हवामह॒ इन्द्र॒मा सोम॑पीतये। स॒जूर्ग॒णेन॑ तृम्पतु॥ - ऋग्वेद 1.23.7 पदार्थ -हे मनुष्य लोगो ! जैसे इस संसार में हम लोग (सोमपीतये) पदार्थों के भोगने के लिये जिस (मरुत्वन्तम्) पवनों के सम्बन्ध से प्रसिद्ध होनेवाली (इन्द्रम्) बिजुली को (हवामहे) ग्रहण करते हैं (सजूः) जो सब पदार्थों में एकसी वर्तनेवाली (गणेन) पवनों के समूह के साथ (नः) हम लोगों को (आतृम्पतु) अच्छे प्रकार तृप्त करती है, वैसे उसको तुम लोग भी सेवन करो॥-------------------------------------------(भाष्यकार - स्वामी दयानंद सरस्वती जी)(सविनय आभार: www.vedicscriptures.in)...more4minPlay
June 20, 2022ऋग्वेद मण्डल 1. सूक्त 23. मंत्र 6वरु॑णः प्रावि॒ता भु॑वन्मि॒त्रो विश्वा॑भिरू॒तिभिः॑। कर॑तां नः सु॒राध॑सः॥ - ऋग्वेद 1.23.6 पदार्थ -जैसे यह अच्छे प्रकार सेवन किया हुआ (वरुणः) बाहर वा भीतर रहनेवाला वायु (विश्वाभिः) सब (ऊतिभिः) रक्षा आदि निमित्तों से सब प्राणि या पदार्थों को करके (प्राविता) सुख प्राप्त करनेवाला (भुवत्) होता है (मित्रश्च) और सूर्य्य भी जो (नः) हम लोगों को (सुराधसः) सुन्दर विद्या और चक्रवर्त्ति राज्यसम्बन्धी धनयुक्त (करताम्) करते हैं, जैसे विद्वान् लोग इन से बहुत कार्य्यों को सिद्ध करते हैं, वैसे हम लोग भी इसी प्रकार इन का सेवन क्यों न करें॥-------------------------------------------(भाष्यकार - स्वामी दयानंद सरस्वती जी)(सविनय आभार: www.vedicscriptures.in)...more5minPlay
June 20, 2022ऋग्वेद मण्डल 1. सूक्त 23. मंत्र 5ऋ॒तेन॒ यावृ॑ता॒वृधा॑वृ॒तस्य॒ ज्योति॑ष॒स्पती॑। ता मि॒त्रावरु॑णा हुवे॥ - ऋग्वेद 1.23.5 पदार्थ -मैं (यौ) जो (ऋतेन) परमेश्वर ने उत्पन्न करके धारण किये हुए (ऋतावृधौ) जल को बढ़ाने और (ऋतस्य) यथार्थ स्वरूप (ज्योतिषः) प्रकाश के (पती) पालन करनेवाले (मित्रावरुणौ) सूर्य और वायु हैं, उनको (हुवे) ग्रहण करता हूँ॥-------------------------------------------(भाष्यकार - स्वामी दयानंद सरस्वती जी)(सविनय आभार: www.vedicscriptures.in)...more4minPlay
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