Pratidin Ek Kavita

Vidroh Karo Vidroh Karo | Shivmangal Singh Suman


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विद्रोह करो, विद्रोह करो। शिवमंगल सिंह 'सुमन'


आओ वीरोचित कर्म करो


मानव हो कुछ तो शर्म करो

यों कब तक सहते जाओगे, इस परवशता के जीवन से


विद्रोह करो, विद्रोह करो।

जिसने निज स्वार्थ सदा साधा


जिसने सीमाओं में बाँधा

आओ उससे, उसकी निर्मित जगती के अणु-अणु कण-कण से


विद्रोह करो, विद्रोह करो।

मनमानी सहना हमें नहीं


पशु बनकर रहना हमें नहीं

विधि के मत्थे पर भाग्य पटक, इस नियति नटी की उलझन से


विद्रोह करो, विद्रोह करो।

विप्लव गायन गाना होगा


सुख स्वर्ग यहाँ लाना होगा

अपने ही पौरुष के बल पर, जर्जर जीवन के क्रंदन से


विद्रोह करो, विद्रोह करो।

क्या जीवन व्यर्थ गँवाना है


कायरता पशु का बाना है

इस निरुत्साह मुर्दा दिल से, अपने तन से, अपने तन से

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