ये मानना कि ध्यान का अर्थ सिर्फ ठहराव या मौन है एक अपरिपक्व सोच है। ध्यान में मौन और ठहराव तो है ही, साथ ही आन्तरिक दुनिया में घटित होने वाली गहन क्रांति भी है। एक ऐसी स्थिति जो एकाग्रता और चंचलता का मिश्रण है, जहाँ आप आप मन के पार चले गयें। यहाँ आप केवल शांत नहीं हुए, एक जगह टिक कर नहीं बैठ गयें बल्कि जीवन और इसके कोलाहल के प्रति और जागरूक हो गयें, जहाँ मन की हर दिवार गिर गई, एक खुलापन आ गया, निर्भीकता आ गई। अब कोई विघ्न नहीं है, सिर्फ एक सुन्दर जीवन है और हर तरफ, हर तत्व में सिर्फ आनंद ही आनंद है। तो कैसे पहुंचें ध्यान की इस स्थिति में? कैसे जियें एक मनचाहा जीवन?