गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा, इन्द्रियों में मैं 'मन' हूँ और भूत प्राणियों में 'चेतना'। सभी जानते हैं कि ज्ञानेन्द्रियों में आँख, नाक, कान, जिव्हा और त्वचा का बहुत महत्व है, लेकिन भगवान ने खुद को 'मन' और 'चेतना' बताया है। इस ज्ञान का सार अद्भुत है क्योंकि योगी और ध्यानी अपने योग और ध्यान के माध्यम से इन दोनों तत्वों को ही छूने का ही प्रयास करते हैं। आखिर किसी शरीर के लिए इन दोनों को जानना और समझना क्यों जरुरी हैं और क्यों भगवान ने खुद को यही संज्ञा दी?