रास्ते |
कौन कहता हैं गुज़र जाते हैं रास्ते
आदमी गुजरते हैं आहिस्ते –आहिस्ते
रास्ते तो रहते हैं वहीं के वहीं
राही चले जाते हैं कहीं ||
कभी क़दमों के निशान
कभी परछाईयों के कारवान
हो जाते हैं रास्तों की छाती में दफ़न
पर रास्ते नहीं पहना करते कफ़न ||
इस लिए, न कहो कि गुज़र जाते हैं रास्ते
आदमी गुजरते हैं आहिस्ते –आहिस्ते ||
पत्थरदिल हो जाते हैं रास्ते पड़े –पड़े
सहते हैं सुख –दुःख और कठिनाइयों के थपेड़े
हर मौसम का करते हैं चुप –चाप सामना
इन्हें नहीं आता छुपना या भाग जाना
इस लिये, न कहो कि गुजर जाते हैं रास्ते
आदमी गुज़रते हैं आहिस्ते आहिस्ते |
‘रास्ता’ होती है किसी समाज की संस्था
‘रास्ता ‘ होती हैं किसी संविधान की विधा
‘रास्ता’ होती हैं किसी संस्कृति की प्रथा
‘रास्ता’ होती हैं किसी व्यक्ति की आस्था |
रास्ते ---
मंजिल दिखाते हैं
मंजिल तक ले जाते है
कभी जीर्ण हो जाते हैं
कभी संकीर्ण हो जाते हैं
कभी शीर्ण हो जाते हैं
और नई ईंट और नई मिटटी के आधीन हो जाते हैं
पर लुप्त नहीं होते, बस गुप्त और लीन हो जाते हैं
बस थोड़े से दबे –दबे और थोड़े महत्वहीन हो जाते हैं
कभी –कभी नए रास्तों के नीचे पिस कर महीन हो जाते हैं
पर एक बार बन जाएँ तो कहीं नहीं जाते हैं
रास्ते तो इतिहास हैं
हमें रास्ता दिखाते हैं ।