जीवन का परमभोग है त्याग। जीवन के रस में डूबना है त्याग। रस-विमुग्ध होना है त्याग। “त्याग’ शब्द से उलझन में मत पड़ जाना। वह भोग का परम रूप है– भोग की पराकाष्ठा। त्याग इसलिए कहते हैं ताकि जिसे तुमने भोग समझ लिया, उस में उलझे न रह जाओ। तुम्हारे तथाकथित भोग को भिन्न करने की दृष्टि से, भेद करने की दृष्टि से त्याग को त्याग कहते हैं, अन्यथा कहना तो चाहिए परम भोग। तुमने भोगा क्या है? तुमने सिर्फ दुःख भोगा है।
तुमने जाना क्या है? –सिवाय चिंताओं के, सिवाय संतापों के। तुमने पहचाना क्या है? अमावस की रात, दीया भी तो नहीं जला। पूर्णिमा तो बहुत दूर। इसे भोग कहोगे? यह कांटों से छिदा हुआ हृदय, और इन चिंताओं से उलझी हुई तुम्हारी चित्त की दशा।
और यह नरक जो तुमने अपने चारों तरफ निर्मित कर लिया है– जिससे तुम घिरे हो, जिससे तुम भरे हो– इसे भोग कहोगे? मगर इसी को तुमने भोग कहा है। इसलिए मजबूरी में ज्ञानियों को इसके विपरीत शब्द चुनना पड़ा–त्याग; ताकि तुम्हें याद दिलाया जा सके कि तुम जो हो यह तुम्हारी नियति नहीं है, तुम्हें कुछ और होना है।
================================================
Don't forget to LIKE, COMMENT & SUBSCRIBE to the Channel
================================================
Buy Me a Coffee - 8882421607, 8882421607@ybl,
================================================
Instagram: @Finanso_Tales_hindi
Twitter: @finanso_tales ================================================
#finansotalesmusic #teamfinansotales #finansosquad
================================================