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By Radio Playback India
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The podcast currently has 22 episodes available.
निमिषा सिंघल का जन्म बुलंदशहर में हुआ
खुर्जा व मेरठ में शिक्षा दीक्षा हुई ,
शिक्षा : एमएससी, बी.एड,एम. फिल,
सूक्ष्मजैविकी में एम.फिल पूरी करने के बाद शास्त्रीय संगीत में प्रवीण तक का सफ़र तय किया।
आज कल निमिषा जी आगरा में रहती हैं। संगीत के साथ साथ वे समर्थ साहित्यकार और कला(oil painting) के क्षेत्र में भी माहिर हैं। कविताएँ और कहानियां लिखती रही हैं।
उनका एक एकल काव्य संँग्रह भी प्रकाशित है
कविता कोश में रचनाएंँ प्रकाशित हो चुकी हैं।
ताज महोत्सव 2016 - 2018 में भजन गजल प्रस्तुति का अवसर पा चुकी हैं।
यूट्यूब पर काव्य रस सरोवर साहित्यिक चैनल का सन्चालन करती हैं।
निमिषा जी बताती हैं कि बचपन से ही पुरानी फिल्मों के शास्त्रीय संगीत आधारित गाने बेहद पसंद थे। प्राम्भिक संगीत शिक्षा के बाद डॉक्टर कुसुम सिंह जी जो आगरा घराने से हैं उनसे बुलंदशहर जाकर संगीत की शिक्षा लेना प्रारंभ कर दिया वहां शारदा संगीत विद्यालय जो प्रयाग यूनिवर्सिटी से एफिलेटेड है से जूनियर व सीनियर डिप्लोमा किया। फिर प्राचीन कला केंद्र चंडीगढ़ से संगीत भूषण में डिप्लोमा लिया साथ ही प्रयाग यूनिवर्सिटी से 5 th-6th ईयर कंप्लीट किया।
इसके बाद सेंट्रल संगीत कला केंद्र न्यू दिल्ली से इन्होंने प्रवीण की डिग्री ली।
प्रकाशन :
*सर्वप्रिय प्रकाशन नई दिल्ली से एकल काव्य संग्रह प्रकाशित 'जब नाराज होगी प्रकृति'
* अमर उजाला,,मेरी सहेली में रचनाएंँ प्रकाशित।
सम्मान /पुरस्कार
1. सर्वश्रेष्ठ सदस्य एवं सर्वश्रेष्ठ कवि सम्मान सावन.इन (अक्टूबर 2019,जनवरी2020)
2.अमृता प्रीतम स्मृति कवयित्री सम्मान 2020
3. बागेश्वरी साहित्य सम्मान 2020
4. सुमित्रानंदन पंत स्मृति सम्मान 2020
5.साहित्यनामा तरंगिनि ऑडियो प्रतियोगिता की विजेता।
6.चिकार्षा मातृभाषा गौरव सम्मान 2021
7.साहित्यनामा तरंगिनि नारी शक्ति पर लेख प्रतियोगिता की विजेता
8.सर्वप्रिय प्रकाशन एवं मुद्रणालय सरकारी समिति रायपुर छत्तीसगढ़ की विशेष आमंत्रित सदस्य व प्रकाशन समिति की सदस्य नियुक्त।
9.स्त्री दर्पण साहित्यिक पटल की कार्यकारिणी सदस्य।
*गीता परिवार से श्रीमद्भगवद्गीता के शुद्ध उच्चारण पर गीता गुंजन प्रशस्ति पत्र प्राप्त।
*अंतर्राष्ट्रीय मां भारती कविता महायज्ञ में कविता पाठ।
प्राप्ति पुराणिक वाराणसी की एक उभरती हुई 20 वर्षीय शास्त्रीय और उप-शास्त्रीय संगीत की गायिका हैं।
प्राप्ति , वाराणसी के पंडित देवाशीष डे की शिष्या हैं और शिल्पायन-द म्यूजिक हब में भी सीखती हैं। वह प्रयाग संगीत समिति से छठा वर्ष कर रही है और शैक्षणिक क्षेत्र में वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से बीए अर्थशास्त्र (ऑनर्स) कर रही है।
पुरस्कार:
1) सेंटर फॉर कल्चरल रिसोर्सेज एंड ट्रेनिंग (सीसीआरटी), भारत सरकार द्वारा जूनियर नेशनल स्कॉलरशिप के प्राप्तकर्ता (वर्ष 2014-15 से)।
2) वर्ष 2017 में शिल्पायन में लेवल टेस्ट 6 को सफलतापूर्वक पास करके उन्होंने "शिल्पयान प्रवीण" की उपाधि प्राप्त की। विदुषी डॉ अश्विनी भिड़े देशपांडे के हाथों पुरस्कार मिला।
3) उन्होंने 2013 में ख्याल में संगीत नाटक अकादमी में बाल वर्ग में पहला और राज्य स्तर पर ठुमरी में तीसरा स्थान हासिल किया।
4) उन्हें 2021 में श्री इंद्रदेव सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स, सिकंदराबाद, तेलंगाना में लाइव प्रदर्शन करके ₹10,000 का नकद पुरस्कार मिला।
प्रदर्शन: (उनमें से कुछ का उल्लेख करते हुए)
️आल इंडिया रेडियो, वाराणसी में कई बार प्रदर्शन किया।
️2012 में दैनिक जागरण के संपादक समारोह पर प्रस्तुति दी।
️2013 में कानपुर के बिल्हौर में "बिल्हौर महोत्सव" में प्रदर्शन किया।
पर्यटन दिवस पर प्रदर्शन किया गया जो 2017 में दशाश्वमेध घाट "बजादा" पर आयोजित किया गया था।
️“सुभ-ए-बनारस”, वाराणसी के मंच पर प्रस्तुति।
️ 2019 में "संगीत संकल्प" द्वारा "काशी संगीत संकल्प" में प्रदर्शन किया।
️ महामारी काल के दौरान विभिन्न प्रतिष्ठित आभासी प्लेटफार्मों पर प्रदर्शन किया और पूरे भारत के 30 से अधिक विभिन्न पृष्ठों जैसे महाराष्ट्र, राजस्थान, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और कई अन्य पर लगभग 30 से अधिक विभिन्न रागों का गायन किया।
भारत के विभिन्न निजी संगीत कार्यक्रमों और शहरों जैसे - नई दिल्ली, नागपुर, पुणे, लखनऊ, कानपुर, अयोध्या, विंध्याचल के साथ-साथ वाराणसी में भी प्रदर्शन किया।
राग भैरव और बातचीत श्रुति प्रभला से
(1) Bal Rang Award - 2005
(2) Voice Of seepat winner - 2016
(3) Got selected in Gurukul Anubhav Scholarship scheme held by spic macay.
* One of the scholar amongst 10 all over India.
(4) went to ITC SANGEET RESEARCH ACADEMY Kolkata
(5) Disciple under faculty of SRA -
Ustad Waseem Ahmad Khan, 17th generation of Agra Gharana
(6) Winner of National Level Singing competition held by Andhra Association Raipur
(7) Second runnerup in voice of world International competition held from Doha Qatar. Being the only one from India
(8) Sang official Corona song for NTPC. Song name :- Jeet Jahi India
(9) Got the opportunity to sing as a classical vocalist in Chhattisgarh Rajyotsava 1st November 2021
रेडियो प्ले बैकइंडिया के भारतीय राग पॉडकास्ट की दूसरी शृंखला हम शुरू कर रहे हैं। इसमें कुछ नवोदित और कुछ प्रतिष्ठित शास्त्रीय संगीत कलाकारों से रेडियो प्लेबैक इंडिया के anchors बातचीत करेंगे। किसी राग पर बातचीत होगी और कलाकार का गायन भी शामिल किया जाएगा।
आज इस पहली कड़ी में दिल्ली की नवोदित कलाकार आख्या सिंग से RPI की प्रज्ञा मिश्रा बातचीत कर रही हैं।
कलाकार का नाम : आख्या सिंह ( Aakhya Singh )
कला : शास्त्रीय गायन
गुरू : विदुषी ऊषा भट्ट जी ( जयपुर- ग्वालियर घराना )
शिक्षा :
(1) अखिल भारतीय गंधर्व महाविद्यालय मंडल मुंबई से "माध्यम प्रथम" की परीक्षा उत्तीर्ण की
(2) प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद से शास्त्रीय गायन में सीनियर डिप्लोमा
(3) दिल्ली विश्वविद्यालय से शास्त्रीय गायन में बीए ऑनर्स
(4) संप्रति शास्त्रीय गायन में परास्नातक (एम ए ) पाठ्यक्रम की पढ़ाई ।
उपलब्धियां :
1- संस्कार टीवी चैनल द्वारा इनके गाए गीत और भजन रिलीज ।
2 - नई दिल्ली के त्रिवेणी सभागार तथा इंडिया इस्लामिक कल्चर सेंटर सभागार जैसे प्रतिष्ठित मंचों से शास्त्रीय और सुगम संगीत गायन ।
3- आकाशवाणी तथा दूरदर्शन से कार्यक्रमों का प्रसारण
4- विश्व हिन्दी परिषद के फेसबुक पर प्रस्तुति जिसे 50,000 से अधिक लोगों ने देखा और सुना ।
विशेष :
1- संगीत और साहित्य से जुड़ी कई निजी संस्थाओं में प्रस्तुति ।
2 - विभिन्न साहित्यिक और संगीत संस्थाओं द्वारा सम्मानित
3- Aakhya Singh के नाम से यूट्यूब चैनल जिस पर इनके गायन से संबंधित वीडियो अपलोड हैं ।
4- Your Lyrics My Voice के नाम से फेसबुक पेज
जन्माष्टमी के अवसर पर रेडियो प्लैबैक इंडिया की विशेष प्रस्तुति
लोकगायिका कुसुम वर्मा की प्रस्तुति, लोकगीतों में कृष्ण दर्शन
आलेख : कृष्ण मोहन मिश्र
प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन
पिछले अंकों में हम यह चर्चा कर चुके हैं कि वर्तमान में प्रचलित थाट पद्धति पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे द्वारा प्रवर्तित है। भातखण्डे जी ने गम्भीर अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि तत्कालीन प्रचलित राग-वर्गीकरण की जितनी भी पद्धतियाँ उत्तर भारतीय संगीत में प्रचार में आईं और उनके काल में अस्तित्व में थीं, उनके रागों के वर्गीकरण के नियम आज के रागों पर लागू नहीं हो सकता। गत कुछ शताब्दियों में सभी रागों में परिवर्तन एवं परिवर्द्धन हुए हैं, अतः उनके पुराने और नए स्वरूपों में कोई समानता नहीं है। भातखण्डे जी ने तत्कालीन राग-रागिनी प्रणाली का परित्याग किया और इसके स्थान पर जनक मेल और जन्य प्रणाली को राग वर्गीकरण की अधिक उचित प्रणाली माना। उन्हें इस वर्गीकरण का आधार न केवल दक्षिण में, बल्कि उत्तर में ‘राग-तरंगिणी’, ‘राग-विबोध’, ‘हृदय-कौतुक’, और ‘हृदय-प्रकाश’ जैसे ग्रन्थों में मिला।
आज हमारी चर्चा का थाट है- ‘भैरव’। इस थाट में प्रयोग किये जाने वाले स्वर हैं- सा, रे॒(कोमल), ग, म, प, ध॒(कोमल), नि । अर्थात ऋषभ और धैवत स्वर कोमल और शेष स्वर शुद्ध प्रयोग होते हैं। थाट ‘भैरव’ का आश्रय राग ‘भैरव’ ही है। यह सम्पूर्ण-सम्पूर्ण जाति का राग है, अर्थात इसके आरोह और अवरोह में सात-सात स्वरों का प्रयोग किया जाता है। राग ‘भैरव’ में कोमल ऋषभ और कोमल धैवत का प्रयोग होता है। शेष सभी स्वर शुद्ध होते हैं। राग में आरोह के स्वर- सारे(कोमल)गम पध(कोमल) निसां तथा अवरोह के स्वर- सांनिध(कोमल) पमग रे(कोमल) सा होते हैं। इस राग का वादी स्वर धैवत और संवादी स्वर ऋषभ होता है। इस राग के गायन-वादन का समय प्रातःकाल होता है। राग भैरव के स्वर समूह भक्तिरस का सृजन करने में समर्थ हैं।
आलेख : कृष्ण मोहन मिश्र
प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन
इन दिनों हम भारतीय संगीत के दस थाटों पर चर्चा कर रहे हैं। पिछले अंकों में हम यह चर्चा कर चुके हैं कि संगीत के रागों के वर्गीकरण के लिए थाट प्रणाली को अपनाया गया। थाट और राग के विषय में कभी-कभी यह भ्रम हो जाता है कि पहले थाट और फिर उससे राग की उत्पत्ति हुई होगी। दरअसल ऐसा नहीं है। रागों की संरचना अत्यन्त प्राचीन है। रागों में प्रयुक्त स्वरों के अनुकूल मिलते स्वर जिस थाट के स्वरों में मौजूद होते हैं, राग को उस थाट विशेष से उत्पन्न माना गया है। मध्य काल में राग-रागिनी प्रणाली प्रचलन में थी। बाद में इस प्रणाली की अवैज्ञानिकता सिद्ध हो जाने पर थाट-वर्गीकरण के अन्तर्गत समस्त रागों को विभाजित किया गया। हमारे शास्त्रकारों ने थाट के नामकरण के लिए ऐसे रागों का चयन किया, जिसके स्वर थाट के स्वरों से मेल खाते हों। थाट के नामकरण के उपरान्त सम्बन्धित राग को उस थाट का आश्रय राग कहा गया। आज का थाट खमाज है। खमाज थाट के स्वर होते हैं- सा, रे ग, म, प ध, नि॒। अर्थात इस थाट में निषाद स्वर कोमल और शेष सभी स्वर शुद्ध होते हैं। इस थाट का आश्रय राग ‘खमाज’ कहलाता है। ‘खमाज’ राग में थाट के अनुकूल निषाद कोमल और शेष सभी स्वर शुद्ध होते हैं। यह षाड़व-सम्पूर्ण जाति का राग है। अर्थात राग के आरोह में छः स्वर और अवरोह में सात स्वर प्रयोग किये जाते हैं। खमाज के आरोह में सा, ग, म, प, ध नि सां और अवरोह में सां, नि, ध, प, म, ग, रे, सा स्वरों का प्रयोग होता है। आरोह में ऋषभ स्वर नहीं लगता। राग में दोनों निषाद का प्रयोग होता है। आरोह में शुद्ध निषाद और अवरोह में कोमल निषाद लगाया जाता है। वादी स्वर गान्धार और संवादी स्वर निषाद होता है। इस राग के गायन-वादन का समय रात्रि का दूसरा प्रहर होता है।
आलेख : कृष्ण मोहन मिश्र
प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन
भारतीय संगीत के रागों को उनमें लगने वाले स्वरों के अनुसार वर्गीकृत करने की प्रणाली को थाट कहा जाता है। पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे ने कुल दस थाट के अन्तर्गत सभी रागों का वर्गीकरण किया था। उन्होने थाट के कुछ लक्षण बताए हैं। किसी भी थाट में कम से कम सात स्वरों का प्रयोग ज़रूरी है। थाट में ये सात स्वर स्वाभाविक क्रम में रहने चाहिये। अर्थात सा के बाद रे, रे के बाद ग आदि। थाट को गाया-बजाया नहीं जा सकता। इसके स्वरों के अनुकूल किसी राग की रचना की जा सकती है, जिसे गाया बजाया जा सकता है। एक थाट से कई रागों की रचना हो सकती है। इस श्रृंखला की पहली कड़ी में हमने आपको ‘कल्याण’ थाट का परिचय दिया था। आज का दूसरा थाट है- ‘बिलावल’। इस थाट में प्रयोग होने वाले स्वर हैं- सा, रे, ग, म, प, ध, नि अर्थात सभी शुद्ध स्वर का प्रयोग होता है। पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे कृत ‘क्रमिक पुस्तक मालिका’ (भाग-1) के अनुसार ‘बिलावल’ थाट का आश्रय राग ‘बिलावल’ ही है। इस थाट के अन्तर्गत आने वाले अन्य प्रमुख राग हैं- अल्हैया बिलावल, बिहाग, देशकार, हेमकल्याण, दुर्गा, शंकरा, पहाड़ी, भिन्न षडज, हंसध्वनि, माँड़ आदि। राग ‘बिलावल’ में सभी सात शुद्ध स्वरों का प्रयोग होता है। वादी स्वर धैवत और संवादी स्वर गांधार होता है। इस राग के गायन-वादन का समय प्रातःकाल का प्रथम प्रहर होता है।
आलेख : कृष्ण मोहन मिश्र
प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन
रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘राग ’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया था। वर्तमान समय में रागों के वर्गीकरण के लिए यही पद्धति प्रचलित है। भातखण्डे जी द्वारा प्रचलित ये 10 थाट हैं- कल्याण, बिलावल, खमाज, भैरव, पूर्वी, मारवा, काफी, आसावरी, तोड़ी और भैरवी। इन्हीं 10 थाटों के अन्तर्गत प्रचलित-अप्रचलित सभी रागों को सम्मिलित किया गया है।
भारतीय संगीत में थाट स्वरों के उस समूह को कहते हैं जिससे रागों का वर्गीकरण किया जा सकता है। पन्द्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में 'राग तरंगिणी’ ग्रन्थ के लेखक लोचन कवि ने रागों के वर्गीकरण की परम्परागत 'ग्राम और मूर्छना प्रणाली’ का परिमार्जन कर मेल अथवा थाट प्रणाली की स्थापना की। लोचन कवि के अनुसार उस समय सोलह हज़ार राग प्रचलित थे। इनमें 36 मुख्य राग थे। सत्रहवीं शताब्दी में थाटों के अन्तर्गत रागों का वर्गीकरण प्रचलित हो चुका था। थाट प्रणाली का उल्लेख सत्रहवीं शताब्दी के ‘संगीत पारिजात’ और ‘राग विबोध’ नामक ग्रन्थों में भी किया गया है। लोचन कवि द्वारा प्रतिपादित थाट प्रणाली का प्रचलन लगभग 300 सौ वर्षों तक होता रहा। उन्नीसवीं शताब्दी अन्तिम और बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भिक दशकों में पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे ने भारतीय संगीत के बिखरे सूत्रों को न केवल संकलित किया बल्कि संगीत के कई सिद्धान्तों का परिमार्जन भी किया। दस थाटों की आधुनिक प्रणाली का सूत्रपात भातखण्डे जी ने ही किया था।
भातखण्डे जी द्वारा निर्धारित दस थाट क्रमानुसार हैं- कल्याण, बिलावल, खमाज, भैरव, पूर्वी, मारवा, काफी, आसावरी, भैरवी, और तोड़ी। इन दस थाटों के क्रम में पहला थाट है कल्याण, जिसकी चर्चा आज के अंक में।
आलेख : कृष्ण मोहन मिश्र
प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन
रे ध कोमल गाइए, दोनों मध्यम मान,
ग-नि वादी-संवादि सों, राग पूर्वी जान।
पूर्वी थाट का आश्रय राग पूर्वी है। यह सम्पूर्ण-सम्पूर्ण जाति का राग है, अर्थात इसके आरोह और अवरोह में सभी सात स्वर प्रयोग होते हैं। राग पूर्वी के आरोह के स्वर- सा रे(कोमल), ग, म॑(तीव्र) प, ध(कोमल), नि सां और अवरोह के स्वर- सां नि ध(कोमल) प, म॑(तीव्र) ग, रे(कोमल) सा होते हैं। इस राग में कोई भी स्वर वर्जित नहीं होता। ऋषभ और धैवत कोमल तथा मध्यम के दोनों प्रकार प्रयोग किये जाते हैं। राग पूर्वी का वादी स्वर गान्धार और संवादी स्वर निषाद होता है तथा इसे दिन के अन्तिम प्रहर में गाया-बजाया जाता है। राग पूर्वी के आरोह में हमेशा तीव्र मध्यम स्वर का प्रयोग किया जाता है। जबकि अवरोह में दोनों मध्यम स्वरों का प्रयोग होता है। कभी-कभी दोनों माध्यम स्वर एकसाथ भी प्रयोग होते है। इस राग की प्रकृति गम्भीर होती है, अतः मींड़ और गमक का काम अधिक किया जाता है। यह पूर्वांगवादी राग है, जिसे अधिकतर सायंकालीन सन्धिप्रकाश काल में गाया-बजाया जाता है। राग का चलन अधिकतर मंद्र और मध्य सप्तक में होता है।
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