आज के अंक में हमने आपके लिए दोनों मध्यम स्वरों से युक्त, अत्यन्त मोहक राग ‘नन्द’ चुना है। इस राग को नन्द कल्याण, आनन्दी या आनन्दी कल्याण के नाम से भी पहचाना जाता है। यह कल्याण थाट का राग माना जाता है। यह षाडव-सम्पूर्ण जाति का राग है, जिसके आरोह में ऋषभ स्वर का प्रयोग नहीं होता। इसके आरोह में शुद्ध मध्यम का तथा अवरोह में दोनों मध्यम का प्रयोग किया जाता है। इसका वादी स्वर षडज और संवादी स्वर पंचम माना जाता है। यह राग कामोद, हमीर और केदार के निकट होता है अतः गायन-वादन के समय राग नन्द को इन रागों से बचाना चाहिए। राग नन्द से मिल कर राग नन्द भैरव, नन्द-भैरवी, नन्द-दुर्गा और नन्द-कौंस रागों का निर्माण होता है।
राग नन्द में तीव्र मध्यम स्वर का अल्प प्रयोग अवरोह में पंचम स्वर के साथ किया जाता है, जैसा कि कल्याण थाट के अन्य रागों में किया जाता है। राग नन्द में राग बिहाग, कामोद, हमीर और गौड़ सारंग का सुन्दर समन्वय होता है। यह अर्द्ध चंचल प्रकृति का राग होता है। अतः इसमें विलम्बित आलाप नहीं किया जाता। साथ ही इस राग का गायन मन्द्र सप्तक में नहीं होता। इस राग का हर आलाप अधिकतर मुक्त मध्यम से समाप्त होता है। आरोह में ही मध्यम स्वर पर रुकते हैं, किन्तु अवरोह में ऐसा नहीं करते। राग नन्द में पंचम और ऋषभ स्वर की संगति बार-बार की जाती है। आरोह में धैवत और निषाद स्वर अल्प प्रयोग किया जाता है, इसलिए उत्तरांग में पंचम से सीधे तार सप्तक के षडज पर पहुँचते है।