आज आपको एक मुशायरा सुनाएंगे. मुशायरा शहर का नहीं है और किसी क़स्बे का भी है नहीं और ये मुशायरा है जनाब एक जंगल का. इसे लिखा है और हमारे लिए रिकॉर्ड करके भेजा है लखनऊ के नौजवान शायर अभिषेक शुक्ल ने. अभिषेक यूं तो नौकरी करते हैं पर बुनियादी तौर पर शाइर हैं. साथ ही अदब में अपनी प्रतिबद्ध और बेबाक राय रखने के लिए जाने जाते हैं. हाल ही में अभिषेक की ग़ज़लों का पहला संकलन ‘हर्फ़ ए आवारा’ राजकमल प्रकाशन से छप कर आया है. शाइरी के साथ-साथ इन दिनों हज़रत अपने चुस्त और चुटीले व्यंग्य लेखन के लिए भी चर्चा में रहते हैं. लखनऊ की गलियों में ख़ाक उड़ाते पाये जाते हैं और इन दिनों भारतीय स्टेट बैंक की मुलाज़िमत में जान और वक़्त निकाल रहे हैं. सुनिए एक जंगल का मुशायरा, अभिषेक शुक्ल से.