केसे बताऊं हाले दिल
आ खयालों से बाहिर
तू रूबरू भी मिल
केसे बताऊं हाले दिल....
करता हूं में बाते तेरी खुद से
कभी तो गुफ्तगू के बहाने मिल
केसे बताऊं हाले दिल....
करती है दस्तक रोज़ तू दिल पे
कभी तो घर के दरवाज़े पे मिल
केसे बताऊं हाले दिल....
अक्सर तू मेरी आहों में रोती है
कभी तो मेरी जान बाहों में मिल
केसे बताऊं हाले दिल....
समाधि📿