कभी कभी मैं ट्रैफिक सिग्नल जैसा होता हूं,
कभी रुका हुआ,कभी भागता हुआ कभी लाल कभी हरा हो जाता हूं
कभी मेरी साईकल के टायर की तरह
गोल गोल घूमता रहता किसी एक ही विचार में
फिर उसमें ग़लतफ़हमी का स्पीड ब्रेकर आजाता
और कभी अपेक्षाओं का पंक्चर पड़ जाता
कभी में डामर की तपती सड़क हो जाता और कभी उसी सड़क पर बारिश गिरती है कभी सपनों के जैसे फूलों की बौछार होती
कभी कामुक्ता के हॉर्नी हॉर्न बजते
चालू सायकिल पर सितारे दिखते
ज़ेबरा क्रासिंग पर बिंदास्त चलता
कभी, कभी यहाँ रुकना मना है को स्वीकारना पड़ता
मैं रास्ता बन जाता हूं पर एक्सप्रेस हाईवे नही बन पाता