5...."श्री हरि कथा- सार. "श्रीमद् भागवत महापुराण पारायण . कथाकुंज परं प्रेम कीर्तन रस झरण ।
बद्रिधाम् जा रहे है, उसि समय आजका परायण किया!
मेरे परिदेवका May 5 तारीखको 75 ईयर्स पूरे हुवे उसी निमित्तसे अमेरिका से बड़ा बेताबीरजू जो साइंटिस्ट है और आर्टोफ लाइव सहज शिक्षक और एडवांसकोर्स टीचर और गुरुजीका परम भक्त है और छोटा बेटा जो स्वामीजी हरिहर है वो दोनो गुरुजीकी आज्ञा और कृपासे हमे ले आए हिमालय ,जीवनमे पहली बार सभी आए।
महात्म्य:
श्री कृष्णजीको प्रथम नमन करते है.
वो कृष्ण कैसे है? सच्चिदानंद रूप है।
वो तो नाम रूप से परे है। प्रभु सत् अस्ति। सत् स्वरूप है। चित् मे तुम वृत्ति नाही खो दो , तो योग हौ जाता है।
भगवत सत्तका कार्य कया है
Function.
Shrusti,Sthiti,Lay, tirobhaav, Anugrah
Aur
Vo Bane hai,
चेतना से और Matterse.
अस्ति ,प्रीति,भाति .....
नाम,रूप
तो जो भी नाम रूप है, उसीका अस्तित्व है।
अथवा ऐसे बोलसक्ते है की जो भी अस्तित्व जो भी नाम रूप है वो उसिके astitvame है.
जो भाति, माने जो भी चांकत है, वो ऊसी के तेज से चमक रहा है, भाति.
भा माने चमक, दीप्ति, आभा,
और जो प्रीति है वो ही उनका मुख्य guN hai।
Vo premke pyaasi है। और प्रेमस्वरूप है.
(अभी हम हरिद्वारमे है.)
जय गुरूदेव।