9. कथा -कुंज, श्री हरि कथा सार भाग-3.
नारद सनकादि संवाद में भागवत कथा का उपक्रम। विशाला क्षेत्र में गंगा जी के किनारे
सनकादिरुषी विराजमान है। देवर्षि नारद जी वहां आए हैं। नारद जी महाराज लोक संग्रह संत है। संतो के दो भेद होते हैं। लोक त्यागी संत और लोक संग्रही संत। सुखदेव जी महाराज लोग त्यागी संत हैं। सब का त्याग कर दिया है ।लंगोटी का भी क्या कर दिया है। व्यास जी को कहा पिता पुत्र का संबंध सच्चा नहीं है। जीव ईश्वर का संबंध सच्चा है। आप पिता नहीं है मैं पुत्र नहीं हूं ।मैं जाता हूं। सबका क्या कर दिया ।यह लोग करते आगे संत।
शुकदेव जी महाराज, सनकादि। ऋषि आदि लोक त्यागी संत है। व्यास जी महाराज नारद जी आदि लोक संग्रह संत है। समाज में भक्ति का प्रचार हो, घर-घर पर नाम प्रचार हो ,सभी लोग भगवान की भक्ति करें ,भगवान की शरण में जाएं ,नारद जी महाराज इसी में प्रवृत्ति करते हैं। नारद जी ने सनकादि ऋषिसे कहा है, अनेक तीर्थों में अनेक क्षेत्रों में भ्रमण किया कलयुग का प्रभाव कितना बढ़ गया जीवन में पैसा और कामसुख,-दो ही मुख्य हो गए हैं। कलयुग का मानव अर्थ और काम से आगे जाता ही नहीं है। पैसा कमा कर के सुख भोगने में ही जीवन पूरा हो जाता है। भक्ति छिन्न-भिन्न हो जाती है वैराग्य को, ज्ञान को,मूर्छा आ जाएगी। लोगों को जगह देखने की इच्छा होती है। जगत जिसने बनाया है, उस भगवान को देखने की इच्छा नहीं होती। कलयुग में ज्ञान वैराग्य को मूर्छा आ गए है। भक्ति छिन्न-भिन्न हो गई है। जीवन भोगप्रधान हुआ है। थोड़ा सा विचार करने पर ध्यान में आएगा की हमारे जीवन की ही यह कथा नारद जी कह रहे हैं। मानव ह्रदय वृंदावन के जैसा है। वृंदावन में भक्ति, ज्ञान, वैराग्य का निवास है। ज्ञान वैराग्य मूर्छा में पड़े हैं भक्ति छिन्न-भिन्न हुई है। भूख प्रधान जीवन में भगवान गौण हुए हैं, पैसा मुख्य हुआ है। भक्ति सभी के ह्रदय में होती है भक्ति भगवान की ही शक्ति है जो ऐसा बोलता है कि मैं ईश्वर को नहीं मानता मैं भक्ति को नहीं मानता धर्म को नहीं मानता ऐसे नास्तिक के रजाई में भी भक्ति होती है जो नास्तिक है वह जब अति दुखी होता है तब उसकी ऐसे लगता है कि यह सब भगवान के अधीन है यह सब ऐसी कोई दिव्य शक्ति है कि जिसके अधीन यह संसार है अति दुख में नास्तिक आस्तिक बन जाता है भगवान को मानने लगता है भगवान की प्रार्थना करता है भक्ति सभी के ह्रदय में है भक्ति चिन्नू हुई है लोग अच्छी अच्छी पुस्तकें पढ़ते हैं थोड़ा ध्यान नहीं करते कि मेरा जीवन कितना अच्छा है बातें करते हैं पुस्तक बहुत अच्छी है अरे पुस्तक तो अच्छी है पर तेरा जीवन कितना अच्छा है बहुत पुस्तक पढ़ने से ज्यादा लाभ नहीं है लोग अच्छी बातें सुनते हैं मन नहीं करते कथा सुनने के बाद कथा का मनन करना चाहिए कथा में मैंने क्या सुना आज मैंने कथा में सुना था मंदिर में जाकर भगवान का दर्शन करना वह साधारण दर्शन है प्रत्येक मानव में भगवान का दर्शन करना और साधारण दर्शन है पशु पक्षी में जड़ वस्तु में भगवान का दर्शन करना यह परोक्ष दर्शन है सभी में दर्शन करना चाहिए कथा का एक एक सिद्धांत याद करो लोक कथा सुनते हैं और कथा में से जब घर जाते हैं तब जो कुछ सुना है सब कुछ भागवत जी को अर्पण करके जैसे थे वैसे ही यहां से घर में चले जाते हैं मैंने क्या सुना आज मेरे लिए कथा में क्या आया श्रवण मनन से सफल होता है खली श्रवण आना पड़ेगा लोग थोड़ा भजन कीर्तन करते हैं कीर्तन भक्ति का कहीं दिख नहीं रहा है कीर्तन शुद्ध भाव से होना चाहिए कीर्तन भक्ति में लोहा गया है कृतिका लोग द्रव्य का लोग आने से कीर्तन भक्ति छिन्न-भिन्न हो गई कीर्तन भक्ति शुद्ध भाव से हो नहीं रही है मैं और भगवान बस हो गई बात मानव जगत को बताने के लिए बाहर मंदिर में जाकर भजन कीर्तन करता है ठीक है जाना चाहिए बहुत अच्छा नहीं है घर में दरवाजा बंद करके कांता में कीर्तन करना चाहिए घर पवित्र होगा कीर्तन जगत को बताने के लिए नहीं है भगवान में तन्मय होने के लिए है कीर्तन भक्ति बिगड़ने लगी कीर्तन करने वाले कई में शुद्ध भाव रहा नहीं कृतिका लोग द्रव्य का लोग आया इससे कीर्तन भक्ति छिन्नबीना हो गई अर्चन भक्ति भिन्न भिन्न भिन्न हो गई भगवान के लिए फूल लेने के लिए लोग बाजार में जाते हैं तो माली कहता है आज गुलाब का फूल चढ़ाने का एक मिलेगा चार आने का एक फूल मिलता हो तो दो रुपया ₹5 देकर ज्यादा गुलाब के फूल लेने की इच्छा नहीं होती कितने लोग तो फिर भगवान को समझा देते हैं आप तो भाव के भूखे हो ना इसलिए मैं झंडू के फूल आपके लिए ले आया हूं भगवान भाव के भूखे हैं और तू काहे का बुखार भगवान कहते हैं तेरे दादा का दादा हमें हूं मैं सब जानता हूं शरीर को सुख देने के लिए कितना खर्च करता है तू वहां संकोच नहीं देहाती पूजा बड़ी देव पूजा नहीं अर्चन भक्ति