हमारे इस देश की तंग गलियों में, खचाखच भरी रेल गाडियों में, खाली बसों में और हवाई जहाजों में, वह कौन हैं जो स्त्रियों के अंगों को छूने में, बार-बार उनके मुंह फेरने पर भी घूरने में, सीटियों से लेकर जुबान की फूहड़ता दर्शाने में, और माँ-बहन की गालियाँ देने में कोई संकोच नहीं करते? क्या यह हम नहीं? क्या यह हमारा आचरण नहीं?