त्वं होता॒ मनु॑र्हि॒तोऽग्ने॑ य॒ज्ञेषु॑ सीदसि। सेमं नो॑ अध्व॒रं य॑ज॥ - ऋग्वेद 1.14.11
हे (अग्ने) जो आप अतिशय करके पूजन करने योग्य जगदीश्वर ! (मनुर्हितः) मनुष्य आदि पदार्थों के धारण करने और (होता) सब पदार्थों के देनेवाले हैं, (त्वम्) जो (यज्ञेषु) क्रियाकाण्ड को आदि लेकर ज्ञान होने पर्य्यन्त ग्रहण करने योग्य यज्ञों में (सीदसि) स्थित हो रहे हो, (सः) सो आप (नः) हमारे (इमम्) इस (अध्वरम्) ग्रहण करने योग्य सुख के हेतु यज्ञ को (यज) सङ्गत अर्थात् इसकी सिद्धि को दीजिये॥
------------------------------------------------------------
(भाष्यकार - स्वामी दयानंद सरस्वती जी)
(सविनय आभार: www.vedicscriptures.in)
-------------------------------------------------------------
Whatsapp/ Telegram पर प्रतिदिन वेद मंत्र पाने के लिए यह फ़ॉर्म भरें: https://forms.gle/69N1UTZfc6hNHp5fA
Telegram पर हमारे चैनल से जुड़ने के लिए इस लिंक पर जाएँ: https://t.me/+RURCMUKRVBllMmI1
--------------------------------------------------------------
हमारे पॉडकास्ट का अनुसरण करें:
Spotify - https://spoti.fi/3sCWtJw
Google podcast - https://bit.ly/3dU7jXO
Apple podcast - https://apple.co/3dStOfy
-------------------------------------------
हमसे संपर्क करें: [email protected]
--------------------------------------------