नरा॒शंस॑मि॒ह प्रि॒यम॒स्मिन्य॒ज्ञ उप॑ह्वये। मधु॑जिह्वं हवि॒ष्कृत॑म्॥ - ऋग्वेद (1.13.3)
मैं (अस्मिन्) इस (यज्ञे) अनुष्ठान करने योग्य यज्ञ तथा (इह) संसार में (हविष्कृतम्) जो कि होम करने योग्य पदार्थों से प्रदीप्त किया जाता है और (मधुजिह्वम्) जिसकी काली, कराली, मनोजवा, सुलोहिता, सुधूम्रवर्णा, स्फुलिङ्गिनी और विश्वरूपी ये अति प्रकाशमान चपल ज्वालारूपी जीभें हैं (प्रियम्) जो सब जीवों को प्रीति देने और (नराशंसम्) जिस सुख की मनुष्य प्रशंसा करते हैं, उसके प्रकाश करनेवाले अग्नि को (उपह्वये) समीप प्रज्वलित करता हूँ॥
------------------------------------------------------------
(भाष्यकार - स्वामी दयानंद सरस्वती जी)
(सविनय आभार: www.vedicscriptures.in)
--------------------------------------------------------------
हमारे पॉडकास्ट का अनुसरण करें:
Spotify - https://spoti.fi/3sCWtJw
Google podcast - https://bit.ly/3dU7jXO
Apple podcast - https://apple.co/3dStOfy
Whatsapp पर प्रतिदिन पॉडकास्ट के एपिसोड प्राप्त करें: https://chat.whatsapp.com/CYWFBJR4ZId7tLCE1AKxwc
Telegram पर प्रतिदिन पॉडकास्ट के एपिसोड प्राप्त करें: https://t.me/+yqO2v2CET0o1OGRl
-------------------------------------------
हमसे संपर्क करें: [email protected]
--------------------------------------------