7 श्रेणी के लोग जो गणेश उत्सव करते और कराते है :-
1) वह जो कोई रीति रिवाज और परंपरा निभा रहे है।
2) किसे भी नाच गाने और मस्ती करने का अवसर चाहिए ,concert और गणेश उत्सव में बहुत कम फर्क बचा है। संस्कारों और ईश्वर से जुड़ना लक्ष्य नही है।
3) बड़े लोग जिन्हे राजनीति करनी है ,अपना राजनीति फायदा करना है ,अपना नाम बड़ा करना है ,और फिर उससे व्यापारिक और आर्थिक लाभ कमाना है।
4) सरकारें और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग ,किसी भी उत्सव को रोजगार से जोड़ते ही है। Isme middle class व्यापारी भी आ गए ,ठीक है उनके लिए ,त्योहार आयेगा उत्सव आयेगा तो व्यापार जोर पकड़ेगा।
5) पांचवी किशोरों का सरल वर्ग है ,अब उनका गणेश बैठने का कारण बाकी पड़ोसी मोहल्ले या सोसायटी से कंपटीशन। जरुरी नही यही वर्ग के बच्चे। कुछ बड़े भी इसी बचकानी सोच का हिस्सा है। इसलिए जब विसर्जन हो गया ,कंपटीशन खतम ,गणेश जी का महत्व खतम।
6) संस्थाओं का समूह ,स्कूल और कॉलेज या ऑफिस। यहां केवल लक्ष्य संस्था से जुड़े लोगो को काम ,पढ़ाई के अलावा कुछ नया माहौल देने का प्रयास रहता है। ताकि उनका मन लगा रहे। इसमें आस्था का कोई भाव नहीं। कहने में और आस्था होने में बहुत फर्क है।
7) अंत में सबसे नीच category Jo utsav ही इसलिए कराते है ताकि इसके बहाने उनके चिकोरपन हो सके। लड़कियों से बाते ,उन्हें पटाने के अवसर की तलाश में , कइयों का तो लक्ष्य शादी शुदा ग्रहस्ती को ही उजाड़ना होता है। ऊपर के सभी चीजों में तो फिर भी ठीक है पर यहां तो गणेश जी का बहुत गलत उपयोग किया जाता है। उनके नाम का , उनमें सच्ची आस्था रखने वाले भक्तों का घोर अपमान किया जाता है।