Devshayani Ekadashi (Hari Shayan) Mantra देवशयनी एकादशी (हरि शयन) मंत्र •
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी या हरिशयनी एकादशी कहते हैं। भगवान श्रीहरि विष्णु प्रकृति के पालनकर्ता हैं और उन्हीं कृपा से यह सृष्टि चल रही है।
इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं। इस के बाद अगले चार महीने तक शुभ कार्य वर्जित हो जाते हैं, जिसे चातुर्मास भी कहते हैं।
इस दिन भगवान विष्णु का विधि विधान से पूजन किया जाता है ताकि चातुर्मास में भगवान विष्णु की कृपा बनी रहे।
– मूर्ति या चित्र रखें।
– दीप जलाएं।
– पीली वस्तुओं का भोग लगाएं।
– पीला वस्त्र अर्पित करें।
– भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें। अगर कोई मंत्र याद नहीं है तो सिर्फ हरि के नाम का जाप भी कर सकते हैं। हरि का नाम अपने आप में एक मंत्र है।
– जप तुलसी या चंदन की माला से करें तो अति उत्तम।
– आरती करें।
फिर इन मंत्रों का उच्चारण करें...
1. देवशयनी एकादशी संकल्प मंत्र
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सत्यस्थ: सत्यसंकल्प: सत्यवित् सत्यदस्तथा।
धर्मो धर्मी च कर्मी च सर्वकर्मविवर्जित:।।
कर्मकर्ता च कर्मैव क्रिया कार्यं तथैव च।
श्रीपतिर्नृपति: श्रीमान् सर्वस्यपतिरूर्जित:।।
2. विष्णु क्षमा मंत्र
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भक्तस्तुतो भक्तपर: कीर्तिद: कीर्तिवर्धन:।
कीर्तिर्दीप्ति: क्षमाकान्तिर्भक्तश्चैव दया परा।।
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3. अंत में इस हरिशयन मंत्र से सुलाएं भगवान विष्णु को
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सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जमत्सुप्तं भवेदिदम्।
विबुद्दे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्।
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अर्थात् , हे प्रभु आपके जगने से पूरी सृष्टि जग जाती है और आपके सोने से पूरी सृष्टि, चर और अचर सो जाते हैं। आपकी कृपा से ही यह सृष्टि सोती है और जागती है। आपकी करुणा से हमारे ऊपर कृपा बनाए रखें।