लेखक - रविंद्र केलेकर
जन्म - 7 मार्च 1925 (कोंकण)Check out my latest episode!
लेखक ने प्रस्तुत पाठ में जो प्रसंग प्रस्तुत किए हैं, उनमें पहले प्रसंग (गिन्नी का सोना) जीवन में अपने लिए सुख-साधन जुटाने वालों से नहीं बल्कि उन लोगो से परिचित करवाता है जो इस संसार को सब के लिए जीने और रहने योग्य बनाए हुए हैं।
लेखक कहते हैं कि शुद्ध सोने में और सोने के सिक्के में बहुत अधिक फर्क होता है, सोने के सिक्के में थोड़ा-सा ताँबा मिलाया जाता है, जिस कारण अधिक चमक आ जाती है और यह अधिक मज़बूत भी होता है। औरतें अकसर उन्हीं सोने के सिक्कों के गहनें बनवाती हैं। लेखक कहते हैं कि किसी व्यक्ति का जो उच्च चरित्र होता है वह भी शुद्ध सोने की तरह होता है उसमें कोई मिलावट नहीं होती। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपने चरित्र में ताँबा अर्थात मिलावटी व्यवहार मिला देते हैं, उन्ही लोगों को सभी लोग व्यावहारिक आदर्शवादी कह कर उनका गुणगान करते हैं। लेखक हम सभी को ये बताना चाहते हैं कि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वर्णन कभी भी आदर्शों का नहीं होता, बल्कि आपके व्यवहार का होता है। कुछ लोग कहते हैं कि गाँधी जी भी व्यावहारिक आदर्शवादियों में से एक थे। यदि गाँधी जी अपने आदर्शो को महत्त्व नहीं देते तो पूरा देश उनके साथ हर समय कंधे-से-कन्धा मिला कर खड़ा न होता। जो लोग केवल अपने व्यवहार पर ही ध्यान देते हैं, केवल वैज्ञानिक ढंग से ही सोचते हैं, वे व्यवहारवादी लोग कहे जाते हैं और ये लोग हमेशा चौकाने रहते हैं कि कहीं इनसे कोई ऐसा काम न हो जाए जिसके कारण इनको हानि उठानी पड़े। सबसे महत्पूर्ण बात तो यह है कि खुद भी तरक्की करो और अपने साथ-साथ दूसरों को भी आगे ले चलो और ये काम हमेशा से ही आदर्शो को सबसे आगे रखने वाले लोगो ने किया है। हमारे समाज में अगर हमेशा रहने वाले कई मूल्य बचे हैं तो वो सिर्फ आदर्शवादी लोगो के कारण ही बच पाए हैं।