भरत जब वापस अयोध्या लौट गए, तब रामचन्द्रजी, लक्ष्मण व सीता मंदाकिनी नदी के किनारे किनारे दक्षिण की ओर बढ़ने लगे। आगे उन्हे अत्री ऋषि का आश्रम मिला। उन्होंने रात वहीं बितायी और सुबह दंडक वन के लिए रवाना हो गए। ऋषि पत्नी भगवती अनुसूया ने सीता को दिव्य वस्त्र, दिव्य अलंकार और दिव्य आभूषण का उपहार दिया जो कि कभी मैले नहीं होते और न ही टूटते हैं। आगे सुने।