दिनकरजी ने सर्ग की शुरुआत उषा काल के वर्णन से किया है कि कैसे उषा पशु पक्षी व पुष्प को उत्साह से भर देती है पर मनुष्य को छू नहीं पट्टी क्योंकि मनुष्य बहुत ज्ञानी हो गया है और वह सरल कौतकता के खुशी से वंचित हो गया है।
वह तो विजय की लालसा मे धर्म को भूल चुका है और पाताल तक भी जीत के पीछे जाने को तैयार है।
फिर दिनकरजी कर्ण के मन मे चल रही विचारों को दर्शाते हैं कि कर्ण बहुत खुश है। उसकी तीव्र इच्छा कि अपने पराक्रम को दूसरों के सामने पेश कर सके और अर्जुन को दवंद युद्ध मे हरा सके, पूरी होगी। जरूर सुने।