श्री रामचरित मानस भाग – 68 | भरत जी का श्री राम की पादुका ले कर अयोध्या लौटना | इस अंक में आप सुनेंगे किस तरह श्री राम भरत जी को अयोध्या लौटने के लिए मना लेते हैं और भारत जी श्री राम की पादुका को श्री राम के चिन्ह रूप में ले कर परिवार और समाज सहित अयोध्या लौट आते हैं | श्री राम की पादुका सिंघासन पर विराज करा के उसका राज्याभिषेक कर अयोध्या में श्री राम के प्रतिनिधि की रूप में राज सम्भालते हैं और नंदीग्राम में कुटी बना कर मुनिवेश धारण कर के रहने लगते हैं |
इसी के साथ अयोध्या काण्ड समाप्त होता है |
अयोध्या कांड में श्री राम के विवाह के
कुछ समय बाद राजा दशरथ जी
ने श्री राम का राज्याभिषेक करना चाहा। इस पर देवताओं
को चिंता हुई कि राम को राज्य मिल जाने पर रावण का
वध असम्भव हो जायेगा। व्याकुल होकर उन्होंने देवी सरस्वती से किसी प्रकार के उपाय करने की
प्रार्थना की। सरस्वती ने मन्थरा, जो कि कैकेयी की दासी थी, की बुद्धि को फेर दिया। मन्थरा की सलाह से कैकेयी कोपभवन में चली गई। दशरथ जब मनाने आये तो कैकेयी ने उनसे वरदान मांगे कि भरत को राजा बनाया जाये और राम को चौदह वर्षों के लिये वनवास
में भेज दिया जाये। राम के साथ सीता और लक्ष्मण भी वन चले गये। ऋंगवेरपुर में निषादराज गुह ने तीनों की बहुत सेवा की। कुछ
आनाकानी करने के बाद केवट ने तीनों को गंगा नदी के पार उतारा| प्रयाग पहुँच कर राम ने भरद्वाज मुनि से भेंट की। वहाँ से राम यमुना स्नान करते हुए वाल्मीकि ऋषि के आश्रम पहुँचे। वाल्मीकि से हुई मन्त्रणा के अनुसार राम, सीता और लक्ष्मण चित्रकूट में निवास करने लगे। अयोध्या में पुत्र के वियोग के कारण दशरथ का स्वर्गवास हो गया। वशिष्ठ ने भरत और शत्रुघ्न को उनके ननिहाल से बुलवा लिया।
वापस आने पर भरत ने अपनी माता कैकेयी की, उसकी कुटिलता के लिये, बहुत भर्तस्ना की और गुरुजनों
के आज्ञानुसार दशरथ की अन्त्येष्टि क्रिया कर दिया। भरत ने अयोध्या के राज्य को अस्वीकार कर दिया
और राम को मना कर वापस लाने के लिये समस्त स्नेहीजनों के साथ चित्रकूट चले गये। कैकेयी को भी अपने किये पर अत्यंत
पश्चाताप हुआ। सीता के माता-पिता सुनयना एवं जनक भी चित्रकूट पहुँचे। भरत तथा अन्य सभी लोगों ने राम के वापस अयोध्या जाकर राज्य करने का प्रस्ताव
रखा जिसे कि राम ने, पिता की
आज्ञा पालन करने और रघुवंश की रीति निभाने के लिये, अमान्य कर दिया।
भरत अपने स्नेही जनों के साथ राम की
पादुका को साथ लेकर वापस अयोध्या आ गये। उन्होंने राम की पादुका को राज सिंहासन पर
विराजित कर दिया स्वयं नन्दिग्राम में निवास करने लगे।
१५वीं शताब्दी के कवि गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा लिखा गया महाकाव्य है, रामचरितमानस
को गोस्वामी जी ने सात काण्डों में विभक्त किया है। इन सात काण्डों के नाम इस प्रकार
2) अयोध्याकाण्ड 3) अरण्यकाण्ड, 4) किष्किन्धाकाण्ड, 5) सुन्दरकाण्ड,
6) लंकाकाण्ड 7)उत्तरकाण्ड।
आइये आप और हम मिल कर आरम्भ करते हैं श्री
is an epic written by the 15th century poet Goswami Shri Tulsidas ji
Goswami ji has divided Ramcharitmanas into
seven Chapters . The names of these seven Chapters are as follows.
2-Ayodhya Kand 3- AranyaKand, 4-Kishkindhakand, 5-Sunderkand,
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