श्री रामचरित मानस भाग – 77 | हनुमान और वनार्समुहों का सीता जी की खोज में निकलना | इस अंक में आप सुनेंगे किस तरह वानर समूह सीता जी की खोज में निकल पड़ते हैं , मार्ग में हनुमान अंगद अदि की सम्पाती गीध से भेंट होती है और सीता जी का पता चलता है |
किष्किन्धा कांड में हम जानेंगे की ,
राम और लक्ष्मण ऋष्यमूक पर्वत के निकट पहुंचते हैं | सुग्रीव अपने मंत्रियों सहित उस पर्वत पर रहता था। इस आशंका में कि कहीं बालि ने उसे मारने
के लिये दोनों वीरों को न भेजा हो, सुग्रीव ने हनुमान जी को श्री राम और लक्ष्मण के विषय में
जानकारी लेने के लिये भेजा। बालि ने उन्हें
नहीं भेजा यह जानने के बाद हनुमान जी ने श्री राम और सुग्रीव को मिलवाया । सुग्रीव ने श्री राम को सान्त्वना
दी कि जानकी जी को खोजने में वह सहायता देगे। सुग्रीव
भगवान् राम को बताते हैं की उनके भाई बालि उनपर बहुत अत्याचार किये हैं | श्री राम ने बालि का वध कर के सुग्रीव को किष्किन्धा का राज्य तथा बालि के पुत्र अंगद को युवराज का
पद दे दिया। राज्य प्राप्ति के बाद सुग्रीव विलास में लिप्त हो गये और वर्षा तथा शरद् ऋतु बीत गए । श्री राम के चेताने पर सुग्रीव ने वानरों के
कई समूह सीता जी की खोज के लिये भेज दिए । सीता की खोज में
गये वानरों को एक गुफा में एक तपस्विनी के दर्शन हुये। तपस्विनी ने खोज दल को
योगशक्ति से समुद्रतट पर पहुँचा दिया जहाँ पर उनकी भेंट जटायु के भाई सम्पाती से हुई। सम्पाती ने वानरों को बताया कि रावण ने सीता को लंका की अशोकवाटिका में रखा है। जाम्बवन्त ने हनुमान जी को समुद्र
लांघने के लिये कहा किन्तु हनुमान जी को संशय था की वे इतनी दुर कैसे जाएंगे । तब
जाम्बवन्त जी ने उनकी शक्तियों को याद दिलाया और बताया कि उन्हें श्री भृगुवंशी जी
को परेशान करते थे जिससे तंग आकर उन्होंने हनुमान को श्राप दे दिया की,"आप अपने बल और तेज को सदा के लिए भूल जाएं
लेकिन जब कोई आपको आपकी शक्तियां याद कराएगा तभी आप उसका उपयोग कर सकोगे।"
आइये आप और हम मिल कर आरम्भ करते हैं श्री
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